किसी सफ़र मे चलने के लिए जरूरी हो जाता है होना किसी पदचिन्ह का...अनुशरण करना या तो जरूरी होता है, संस्कार या तो मजबूरी..पर हाल मे अनुशरण करना है..हाँ कुछ सरफिरे चाहते तो है इंसानियत के सफ़र को आसान बनाना पर वो तो पागल होते है.. क्योकि वो चमत्कार नहीं चीत्कार करते है हमारे आत्मा के गहराइयों में..पर में खुद को पागल नहीं समझता..इसीलिए मै भी तो बुतों के मंदिर का एक उपासक हूँ..जहाँ भावनाओ को अहंकार के तलवार से हररोज़ बलि दिया जाता है...
(शंकर शाह)