मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
निशिचर रात की गहराइयाँ मुझसे पूछती रही...बता तू ताकता क्या है..मैंने कहा दोस्त कुछ पल और तो निहार लेने दे तेरे पीछे जो उजाला छुपा है..उसे भी हो जाये भरोसा कोई मेरा बाट तकता बैठा है........
अच्छी लगी रचना आपकी मुवारक हो
ReplyDeleteक्षमा करेंगे। "निशिचर रात" का क्या तात्पर्य है। रात की गहराईयां या निशिचर गहराईयां उचित नहीं होता?
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