LATEST:


MERI KAHANI

Saturday, August 14, 2010

Jo Bit Raha Hai / जो बीत रहा है

कुछ दूरी तय करने के बाद थकान..बैठ जाना सोचना ये अगर अपने आप हो जाता...आंखे सिकुर कर देने लगती है आकार कैसा होता. सपने देखना बेहतर होने का और आकार देना पत्थर को अपने कल्पनावो को सजाके..थकना तो चलने का प्रतिरूप... सपने साकार करने का रास्ता आसान नहीं. शिप को भी सदियों लग जाते है मोती को आकार देने में..हारना फैसला किस्मत के ऊपर और हारना फैसले के साथ चुनौती स्वीकारते..हर रात के बाद दिन..जो बीत रहा है.. बीत रहा है..............................

No comments:

Post a Comment

THANKS FOR YOUR VALUABLE COMENT !!