LATEST:


MERI KAHANI

Thursday, August 19, 2010

Sawdhan Insaniyat Ke Dushman / सावधान इंसानियत के दुश्मन

कही आँशु पे खिलते राजनीती कमल तो कही मुर्दों के बलात्कार पे...हर हाल पे कुछ अपने रोटिओं के सेकते और बहुत है जो लकड़ी की तरह जल रहे...कुछ खामोश चेहरे कई बोलते बुतों में जान डालना चाहते है..क्रांति की स्याही से लिखी हर किताब चिल्ला चिल्ला कर कह रही है.."में दिनों का नहीं दसको, सदियों का घुटता हुआ..काटा गया, लुटा हुआ दिल का शोर हूँ...हर बार खामोश आँहो को समेत कर ज्वाला बनता और हर बार, बार बार खुद को दोहराऊंगा..सावधान इंसानियत के दुश्मन ".. 
 
 
(शंकर शाह)

No comments:

Post a Comment

THANKS FOR YOUR VALUABLE COMENT !!