कभी कभी मेरे मन के सुनसान घर में आहट होती है किसी के करीब होने की...सोच के दरवाजे पर कुण्डी लगी होती है फिर भी सांसो की खिर्कियाँ महसूस कराती है किसी के होने का एहसास..बार बार हर बार मै ताला बदल देता हूँ..पर कमबख्त ये लालसा रूपी ताला हर बार चटक जाता है इस एहसास में की सायद उनकी मंजिल का आखिरी सीढ़ी हम हो....
(शंकर शाह)
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