मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Thursday, February 20, 2025
एक साल फिर गुज़र गया!
एक साल फिर गुज़र गया
जैसे मुट्ठी बंद हाथो से रेत
पिछले साल की तरह
इस साल भी सपने मलिन रहे
और ख़्वाब अधूरे
जाने क्यो जैसे जैसे जिंदगी के साल कम हो रहे है
वैसे वैसे छटपटाहट बढ़ती जा रही है
लौटने को फिर से एक बार बचपन मैं.
मैं और मेरी ख्वाहिशे, किसी दिन ऐसे हीन खुदकुशी कर लेंगे
और दुनिया कहेगी देखो वो बड़े लोग !
शंकर शाह
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
THANKS FOR YOUR VALUABLE COMENT !!