मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
रात का ख़ामोश प्रहर
जब दुधिया रोशनी मैं
घोलता है यादों का चाशनी
ना जाने क्यों, सिर्फ़ तुम होती हो
मानो जैसे संगीत, तुम्हारा संग और
साँसों मैं ख़ुशबू गुनगुना रही हो
एक प्रेम संगीत !
शंकर शाह
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