मै सवालो के घेरे
में कैद हो के रह गया हूँ ....जब तक वह एक सवाल का जबाब खोजता हूँ तब तक उस सवाल के मायने
बदल गए होते है.."सवाल" सवाल अगर पथ है तो जबाब भूल भुलैया..जब सब बाधाओ
को पार कर मै पहुँच जाता हूँ जवाब के करीब तो सवाल फीर से के सवाल कर बैठता है...जानता नहीं ये सिलसिला कबतक चलता रहेगा पर सवाल जबाब नामक बिल्लीओं के बिच में जिंदगी बन्दर बन के बैठा है…जरूरते लोगो की, मुझे उनके बिच, मेरे जिंदगी को कन्धा दे रखा है वरना बिल्लियाँ लडती नहीं और बन्दर महान नहीं होता ।
शंकर शाह
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