आ बनाया है , ये मधु का प्याला,
लगाले अधरों से भूल जाएगी गम,
भूल जाएगी सब हाला,
रोना नहीं मेरी अंगूरी,
चाहे रोज तोडू तेरा हड्डी या ताला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
माँ को देख ले, कल तक वो
कमाती रही मेरे लिए...
आज तुने है कमान संभाला,
आजा चखले ये स्वर्ग सी प्याला
भूल जाएगी हर गम,
क्योकि हर गम का है
यह हाला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मत देख पीछे, अपने बच्चो को माँ को,
मैंने खा लिया है, अब भूख नहीं है बाला
अब तो चाहता हूँ दो घूंट उतार लू हलक में
ताकि निशि रात भी न लगे मुझे काला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
ह्म्म्म क्या सोचती, मत सोच
अपने ननद के लिए, भगवान ने
उसका भी किस्मत लिख डाला,
उसे भी ले जायेगा कोई पीनेवाला
चल पी न,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
क्यों कोश्ती है अपने किस्मत को
तू खुशनसीब है, मै जिसे मिला
वो है किस्मत वाला,
देख नेता कहते मुझे, तू मेरे कुर्सी का रखवाला
देख मेरे वजह से चल रही, टूनडू का मधुशाला
नेताओ की जी हुजूरी दंगा फसाद,
माओबाद का में हीं तो हूँ जाला,
मुझे मिल जाये अंगूरी रस
फिर नहीं चाहिए स्वर्ग रूपी मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मुझसे हीं घर बिखरे, कई घड़ो मैंने तोड़ डाला
मुझे भी दुख होता है जब तोड़ता मंदिर मस्जिद
पर इसी से तो मिलती है तुझसी मधुबाला
सब साफ़, जब बैठता ऊपर मधुशाला
हाँ येही से सुरुआत येही ख़तम
येही तो है मेरा मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
(शंकर शाह)
मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Friday, July 16, 2010
Thursday, July 15, 2010
Sawal mere Hone Ka / सवाल मेरे होने का
मै जितना सवालो के घेरे से निकलना चाहता हूँ..उतना हीं उसमे घिरता जाता हूँ...जबाब तो धुन्धता हूँ पर जबाब फिर से सवाल कर बैठता है...जबाब से सवाल और सवाल का जबाब.. इनका सिलसिला चलता रहता है..अगर चाहे तो सवाल से भाग तो सकते है क्योकि इसका दायरा अनंत है निराकार है..पर कब तक, मौत भी तो एक जबाब है जिंदगी का और जिंदगी भी तो एक सवाल है मेरे होने का....
(शंकर शाह)
Wednesday, July 14, 2010
Dhool Se Aalergy Hai / धुल से एलर्जी है
गाँव के पगडंडियो से पूछता मेरा बचपन..खामोश पड़े मंदिर के चारदिवारिओं से सवाल करता मेरा छुपनछुपाई..मंदिर के घंटे की तरह रह रह जागना चाहता मेरा बचपन से सवाल पूछते शांत पड़े पीपल दादा लौट आओ बेटे अब भी मुझमे वो ताकत है तुम्हारे साथ झूम उठू..पर शहर की गलियां निशि रात के सपने की तरह उन्हें भोर तक पोता माड़ देती है..लौटना तो चाहता हूँ दादा पर मेरे बच्चो को धुल से एलर्जी है...
(शंकर शाह)
Monday, July 12, 2010
Mai to Majdoor Hoon / मै तो मजदूर हूँ
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
मै बनाता आपका महल
मेरा रहने को घर नहीं
आपके महलो में
जोरता खून पसीना
अपने झोपड़े में जोरने
को ईंट भी नहीं
मेरे खून पसीने की
आपके नजरो में मोल क्या
मै तो मजदूर हूँ ,
मुझे औरो से क्या
मेरी किस्मत तो देखिये
सपने अपने बुने
आकार मै देता रहा
खुद में बँट कर उसे जोरता रहा
फिर भी आपके उन सपनो
मेरा अस्तित्व क्या
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
तस्सली हर रोज देता हूँ
खुद से, कल मेरे हालात
सँवर जायेंगे ,
पर आज की जद्दोजहद में
मेरा कल क्या
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
अनाज के दर्रे से
सेंकता भूख को ,
और भूख आपका सौक
मेरे मेहनत का फल
मेरी किस्मत
वाह मेरे किस्मत के निर्माता
मेरा भी किस्मत क्या
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
कहने को तो मेहनत से
लगन से दुनिया अपनी
अपनों के भूख की रोटी
मजबूर मेरी मेहनत लगन
का आधार क्या,
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
(शंकर शाह)
मुझे औरो से क्या
मै बनाता आपका महल
मेरा रहने को घर नहीं
आपके महलो में
जोरता खून पसीना
अपने झोपड़े में जोरने
को ईंट भी नहीं
मेरे खून पसीने की
आपके नजरो में मोल क्या
मै तो मजदूर हूँ ,
मुझे औरो से क्या
मेरी किस्मत तो देखिये
सपने अपने बुने
आकार मै देता रहा
खुद में बँट कर उसे जोरता रहा
फिर भी आपके उन सपनो
मेरा अस्तित्व क्या
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
तस्सली हर रोज देता हूँ
खुद से, कल मेरे हालात
सँवर जायेंगे ,
पर आज की जद्दोजहद में
मेरा कल क्या
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
अनाज के दर्रे से
सेंकता भूख को ,
और भूख आपका सौक
मेरे मेहनत का फल
मेरी किस्मत
वाह मेरे किस्मत के निर्माता
मेरा भी किस्मत क्या
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
कहने को तो मेहनत से
लगन से दुनिया अपनी
अपनों के भूख की रोटी
मजबूर मेरी मेहनत लगन
का आधार क्या,
मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या
(शंकर शाह)
Friday, July 9, 2010
Bada Sukun Milta Hai / बड़ा सुकून मिलता है
सदियों के सफ़र तय करने बावजूद मुस्कुराता पीपल...ढल चुकी जीवन के साम बावजूद बच्चो के ख़ुशी पे खुश माँ बाप..कई चेहरे है जो सीढ़ी बनके भी खुश हो लेते है..दुनिआदारी नाम की तपिश भी उन्हें पिघला नहीं पाती..खो के देखो गहराई में बड़ा सुकून मिलता है किसी झुके हुए कमर का लाठी बनकर किसी लड़खड़ाते कदम को अंगुली थमाकर.......
(शंकर शाह)
Thursday, July 8, 2010
Hum Sanskari Log Hain / हम संस्कारी लोग है
सृस्ती के एक हीं गर्भ से पैदा हुए..पर संस्कार देने वाले अलग अलग राह अनुसरण कराते रहे..इतिहास के पन्नो में मैंने भी अनुसरण किया उस राह को और तुमने भी..अपना पदचिन्ह छोडते रहे ताकि दूसरा भी अनुसरण करे..एक घर में कई चेहरे पर उनपे मोहर अलग होने का.. एक ठप्पा विचारो के बोझ का..तुम भी उठाओ में भी उठाऊ "संस्कृति" है और हम संस्कारी लोग है.....
(शंकर शाह)
Tuesday, July 6, 2010
Ichhayen To Anant Ganga / इच्छाएं तो अनंत गंगा
मैं बहुत कुछ सोचता हूँ लेकिन बहुत कुछ नहीं कर पाता..इसीलिए नहीं इच्छाशक्ति नहीं है इसलिए की इच्छाये विचार के भावुकता की बलि चढ़ जाती है...आटा, ताव, तावा ये पूरक है रोटी के पर उन सब के बिच कमानेवाला, लानेवाला. खानेवाला भी है..ये आंख सहित अँधा सफ़र है.. इच्छाएं तो अनंत गंगा की तरह है...कभी इच्छाओं को मारना परता है तो कभी इच्छाएं अपने आप मर जाती है..
(शंकर शाह)
Saturday, July 3, 2010
Dharti Maa Jaise / धरती माँ जैसे
जिंदगी में कई वक़्त ऐसे आते है जब पत्थर से पत्थर इंसान भी कांप उठता है अपने दिल में उठने वाले जज्बातों से और अपनों के तकलीफ से..जो हम मुखौटा लगाते घूमते है क्यों वो भी पसीज जाता है अपने पीछे चेहरे के भाव से..कभी क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम तारे बन जाये जैसा भी परिस्थिति हो टिमटिमाते रहे..या धरती माँ जैसे...
(शंकर शाह)
Friday, July 2, 2010
Ek Jinda Robot Hoon / एक जिन्दा रोबोट हूँ
एक भीड़ है जो चल रहा है..एक रास्ता है जो उस भाड़ को सह रहा है..जो मूक है वो इशारा कर रहा और जो बोल सकता है वो रोबोट सा अनुसरण कर रहा है..रास्ता गवाह बन कह रहा है आपबीती उन पथिको का अपने में समेटे उनके अवसेशों के सहारे..फिर भी भीड़ को तो चलना है चल रहा है..पता नहीं लाशों के साये पर कितनो का चलना अच्छा क्यों लगता है और कितनो को उन्ही लाशो के अर्थी पर बलात्कार रूपी राजनीती..पर मेरा क्या में भी तो एक जिन्दा रोबोट हूँ..अभी कलपुर्जा बेटरी का वारेन्टी तो है..
(शंकर शाह)
Wednesday, June 30, 2010
Yun Ret Na Banta PAtthar / यूँ रेत न बनता पत्थर
कहता है जमाना क्यों सोचता इतना..कहता है क्यों लिखता है कड़वाइ को..क्यों नहीं जीता आज को.. क्यों डराता है सच्चाई को...बहुत "क्यों" है दोस्तों जो हर रोज सामना करता हूँ.. यूँ रेत न बनता पत्थर अगर सदियों तक ज़माने के तपिश ने उसे तपाया न होता..मै आज "हम" होता अगर सच्चाई को गले न लगाया होता...
(शंकर शाह)
Tuesday, June 29, 2010
Dil Puchta Hai Mera / दिल पूछता है मेरा
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
थोडा नजर तो घुमा
सामने समसान दिख रहा है
ना व्यव्हार बना रहा है ना
त्यौहार मना रहा है
दिवाली हो की होली सब तो
ऑफिस में हीं मना रहा है
ये सब तो ठीक है पर
हद तो वहाँ हो रही है
शादी की निमंत्रण मिला तो
मान मान वहा जा रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
फ़ोन बुक भरा हुआ है दोस्तो से
किसी से मिलने मुस्किल से जा रहा है
अब तो हद हुइ घर का त्योहार भी
तो हाल्फ डे मे मना रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
किसी को पता नहीं
ये रस्ता कहा जा रहा है
फिर भी है की वो चला जा रहा है
किसी को डोलर की ख्वाहिश
तो रुपये के पिछे भाग रहा है
तुम्ही कहो दोस्तो क्या
ये हि जिन्दगी है?
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
थोडा नजर तो घुमा
सामने समसान दिख रहा है
ना व्यव्हार बना रहा है ना
त्यौहार मना रहा है
दिवाली हो की होली सब तो
ऑफिस में हीं मना रहा है
ये सब तो ठीक है पर
हद तो वहाँ हो रही है
शादी की निमंत्रण मिला तो
मान मान वहा जा रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
फ़ोन बुक भरा हुआ है दोस्तो से
किसी से मिलने मुस्किल से जा रहा है
अब तो हद हुइ घर का त्योहार भी
तो हाल्फ डे मे मना रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
किसी को पता नहीं
ये रस्ता कहा जा रहा है
फिर भी है की वो चला जा रहा है
किसी को डोलर की ख्वाहिश
तो रुपये के पिछे भाग रहा है
तुम्ही कहो दोस्तो क्या
ये हि जिन्दगी है?
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
(शंकर शाह)
Monday, June 28, 2010
Dil Pucche Chhe Maroo Arey Dost Too Kya Jay Che / દિલ પૂછે છે મારું અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
જરાક નજર તો નાખ ,
સામે સમસાન દેખાય છે
ના વ્યવહાર સચવાય છે
ના તહેવાર સચવાય છે
દિવાળી હોય કે હોળી
ઓફીસ માં ઉજવાય છે
આ બધું તો ઠીક હતું
પણ હદ તો ત્યાં થાય છે
લગ્ન ની કન્કોક્ત્રી મળે ત્યાં
શ્રીમંત માં માંડ જવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
ફોન બૂક ભરેલા છે મિત્રો થી
કોઈક ના ઘેર ક્યાં જવાય છે
હવે તો હદ થઇ ઘર ના પ્રસંગો
પણ હાફ ડે માં ઉજવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને ખબર નથી આ
રસ્તો ક્યાં જાય છે
થાકેલા છે બધ્ધા છત્તા
ચાલતા જ જાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને સામે રૂપિયા તો
કોઈક ને ડાલર દેખાય છે
તમેજ કહો મિત્રો સુ આનેજ
જીંદગી કેહવાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
જરાક નજર તો નાખ ,
સામે સમસાન દેખાય છે
ના વ્યવહાર સચવાય છે
ના તહેવાર સચવાય છે
દિવાળી હોય કે હોળી
ઓફીસ માં ઉજવાય છે
આ બધું તો ઠીક હતું
પણ હદ તો ત્યાં થાય છે
લગ્ન ની કન્કોક્ત્રી મળે ત્યાં
શ્રીમંત માં માંડ જવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
ફોન બૂક ભરેલા છે મિત્રો થી
કોઈક ના ઘેર ક્યાં જવાય છે
હવે તો હદ થઇ ઘર ના પ્રસંગો
પણ હાફ ડે માં ઉજવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને ખબર નથી આ
રસ્તો ક્યાં જાય છે
થાકેલા છે બધ્ધા છત્તા
ચાલતા જ જાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને સામે રૂપિયા તો
કોઈક ને ડાલર દેખાય છે
તમેજ કહો મિત્રો સુ આનેજ
જીંદગી કેહવાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
(મયુર સેઠ)
Saturday, June 26, 2010
Kal To Har Roz Ata / कल तो हर रोज आता
मौसम बदला ऋतू बदली बागो में फूल खिले, पेड़ो पर फल फले कोयल मुस्कुराई, अपने मीठे स्वर में संगीत सुनाई..फिर मौसम बदला ऋतू बदली बाग़ अब लगते है उजरे उजरे..पेड़ उदास साम सा अपने टूटे पत्तियों को समेत रहा...कोयल जो मीठा संगीत सुनाती..वक़्त के साथ उर चली..बदलाव जीवन का मौत जैसा सच..ऋतुएं तो बदलती रहेगी मौसम भी...पर कब तक उन जैसे हम भी...फिर बसंत आयेगी..फिर से जिंदगी मुस्कुराएगी..तब तक क्या जिंदगी धर्केगी..कल तो हर रोज आता है पर आज क्या कल फिर आयेगी..?
(शंकर शाह)
Friday, June 25, 2010
Kranti Ki Suruaat / क्रांति की सुरुआत
रोये बहुत रोये फिर लग गये काम में वो..पर था कोई जो रोया नहीं..आंशुओ को पीता रहा और गम से अपने क्रांति की गोदाम को भरता रहा.उसे बनना था क्रांतिवीर जो ज़माने का आवाज़ बनता या तालिबान, माओबादी, या आतंकवाद का एक थूकदान...जब अपना आवाज़ अपने को चिर के अपने तक पहुँचता है तो एक क्रांति की सुरुआत होती है..पर क्रांति की परिभासा कैसा हो वो क्रांतिवीर पर निर्भर करना है..
(शंकर शाह)
Wednesday, June 23, 2010
Chand Taro Ke Avishkar / चाँद तारो के अविष्कार
इतिहास पढ़ पढ़ कर पोंगा पंडित बन तो गया..पर आज का गवाह बनना चाहा नहीं..बुढा पीपल कहता तो है "शांत,शीतल,निर्मल बनो" पर ए/सी पंखे के निचे उकसा महत्व है सही ..चाँद तारो के अविष्कार में उलझा रहा..मै क्यों हूँ पता नहीं...बंद घर में जो भी करले घुटन तो होगा..तो चलो लगा ले चौपाल अपने आत्मा के निचे और सुनादे एक फैसला उसके हक में...पता ना कल होगा भी या नहीं......
(शंकर शाह)
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