मैं बहुत कुछ सोचता हूँ लेकिन बहुत कुछ नहीं कर पाता..इसीलिए नहीं इच्छाशक्ति नहीं है इसलिए की इच्छाये विचार के भावुकता की बलि चढ़ जाती है...आटा, ताव, तावा ये पूरक है रोटी के पर उन सब के बिच कमानेवाला, लानेवाला. खानेवाला भी है..ये आंख सहित अँधा सफ़र है.. इच्छाएं तो अनंत गंगा की तरह है...कभी इच्छाओं को मारना परता है तो कभी इच्छाएं अपने आप मर जाती है..
(शंकर शाह)
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