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MERI KAHANI

Wednesday, July 14, 2010

Dhool Se Aalergy Hai / धुल से एलर्जी है

गाँव के पगडंडियो से पूछता मेरा बचपन..खामोश पड़े मंदिर के चारदिवारिओं से सवाल करता मेरा छुपनछुपाई..मंदिर के घंटे की तरह रह रह जागना चाहता मेरा बचपन से सवाल पूछते शांत पड़े पीपल दादा लौट आओ बेटे अब भी मुझमे वो ताकत है तुम्हारे साथ झूम उठू..पर शहर की गलियां निशि रात के सपने की तरह उन्हें भोर तक पोता माड़ देती है..लौटना तो चाहता हूँ दादा पर मेरे बच्चो को धुल से एलर्जी है... 


(शंकर शाह)

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