जिंदगी में कई वक़्त ऐसे आते है जब पत्थर से पत्थर इंसान भी कांप उठता है अपने दिल में उठने वाले जज्बातों से और अपनों के तकलीफ से..जो हम मुखौटा लगाते घूमते है क्यों वो भी पसीज जाता है अपने पीछे चेहरे के भाव से..कभी क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम तारे बन जाये जैसा भी परिस्थिति हो टिमटिमाते रहे..या धरती माँ जैसे...
(शंकर शाह)
No comments:
Post a Comment
THANKS FOR YOUR VALUABLE COMENT !!