मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Thursday, July 8, 2010
Tuesday, July 6, 2010
Ichhayen To Anant Ganga / इच्छाएं तो अनंत गंगा
मैं बहुत कुछ सोचता हूँ लेकिन बहुत कुछ नहीं कर पाता..इसीलिए नहीं इच्छाशक्ति नहीं है इसलिए की इच्छाये विचार के भावुकता की बलि चढ़ जाती है...आटा, ताव, तावा ये पूरक है रोटी के पर उन सब के बिच कमानेवाला, लानेवाला. खानेवाला भी है..ये आंख सहित अँधा सफ़र है.. इच्छाएं तो अनंत गंगा की तरह है...कभी इच्छाओं को मारना परता है तो कभी इच्छाएं अपने आप मर जाती है..
(शंकर शाह)
Saturday, July 3, 2010
Dharti Maa Jaise / धरती माँ जैसे
जिंदगी में कई वक़्त ऐसे आते है जब पत्थर से पत्थर इंसान भी कांप उठता है अपने दिल में उठने वाले जज्बातों से और अपनों के तकलीफ से..जो हम मुखौटा लगाते घूमते है क्यों वो भी पसीज जाता है अपने पीछे चेहरे के भाव से..कभी क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम तारे बन जाये जैसा भी परिस्थिति हो टिमटिमाते रहे..या धरती माँ जैसे...
(शंकर शाह)
Friday, July 2, 2010
Ek Jinda Robot Hoon / एक जिन्दा रोबोट हूँ
एक भीड़ है जो चल रहा है..एक रास्ता है जो उस भाड़ को सह रहा है..जो मूक है वो इशारा कर रहा और जो बोल सकता है वो रोबोट सा अनुसरण कर रहा है..रास्ता गवाह बन कह रहा है आपबीती उन पथिको का अपने में समेटे उनके अवसेशों के सहारे..फिर भी भीड़ को तो चलना है चल रहा है..पता नहीं लाशों के साये पर कितनो का चलना अच्छा क्यों लगता है और कितनो को उन्ही लाशो के अर्थी पर बलात्कार रूपी राजनीती..पर मेरा क्या में भी तो एक जिन्दा रोबोट हूँ..अभी कलपुर्जा बेटरी का वारेन्टी तो है..
(शंकर शाह)
Wednesday, June 30, 2010
Yun Ret Na Banta PAtthar / यूँ रेत न बनता पत्थर
कहता है जमाना क्यों सोचता इतना..कहता है क्यों लिखता है कड़वाइ को..क्यों नहीं जीता आज को.. क्यों डराता है सच्चाई को...बहुत "क्यों" है दोस्तों जो हर रोज सामना करता हूँ.. यूँ रेत न बनता पत्थर अगर सदियों तक ज़माने के तपिश ने उसे तपाया न होता..मै आज "हम" होता अगर सच्चाई को गले न लगाया होता...
(शंकर शाह)
Tuesday, June 29, 2010
Dil Puchta Hai Mera / दिल पूछता है मेरा
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
थोडा नजर तो घुमा
सामने समसान दिख रहा है
ना व्यव्हार बना रहा है ना
त्यौहार मना रहा है
दिवाली हो की होली सब तो
ऑफिस में हीं मना रहा है
ये सब तो ठीक है पर
हद तो वहाँ हो रही है
शादी की निमंत्रण मिला तो
मान मान वहा जा रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
फ़ोन बुक भरा हुआ है दोस्तो से
किसी से मिलने मुस्किल से जा रहा है
अब तो हद हुइ घर का त्योहार भी
तो हाल्फ डे मे मना रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
किसी को पता नहीं
ये रस्ता कहा जा रहा है
फिर भी है की वो चला जा रहा है
किसी को डोलर की ख्वाहिश
तो रुपये के पिछे भाग रहा है
तुम्ही कहो दोस्तो क्या
ये हि जिन्दगी है?
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
थोडा नजर तो घुमा
सामने समसान दिख रहा है
ना व्यव्हार बना रहा है ना
त्यौहार मना रहा है
दिवाली हो की होली सब तो
ऑफिस में हीं मना रहा है
ये सब तो ठीक है पर
हद तो वहाँ हो रही है
शादी की निमंत्रण मिला तो
मान मान वहा जा रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
फ़ोन बुक भरा हुआ है दोस्तो से
किसी से मिलने मुस्किल से जा रहा है
अब तो हद हुइ घर का त्योहार भी
तो हाल्फ डे मे मना रहा है
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
किसी को पता नहीं
ये रस्ता कहा जा रहा है
फिर भी है की वो चला जा रहा है
किसी को डोलर की ख्वाहिश
तो रुपये के पिछे भाग रहा है
तुम्ही कहो दोस्तो क्या
ये हि जिन्दगी है?
दिल पूछता है मेरा
अरे दोस्त तू कहाँ जा रहा है?
(शंकर शाह)
Monday, June 28, 2010
Dil Pucche Chhe Maroo Arey Dost Too Kya Jay Che / દિલ પૂછે છે મારું અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
જરાક નજર તો નાખ ,
સામે સમસાન દેખાય છે
ના વ્યવહાર સચવાય છે
ના તહેવાર સચવાય છે
દિવાળી હોય કે હોળી
ઓફીસ માં ઉજવાય છે
આ બધું તો ઠીક હતું
પણ હદ તો ત્યાં થાય છે
લગ્ન ની કન્કોક્ત્રી મળે ત્યાં
શ્રીમંત માં માંડ જવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
ફોન બૂક ભરેલા છે મિત્રો થી
કોઈક ના ઘેર ક્યાં જવાય છે
હવે તો હદ થઇ ઘર ના પ્રસંગો
પણ હાફ ડે માં ઉજવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને ખબર નથી આ
રસ્તો ક્યાં જાય છે
થાકેલા છે બધ્ધા છત્તા
ચાલતા જ જાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને સામે રૂપિયા તો
કોઈક ને ડાલર દેખાય છે
તમેજ કહો મિત્રો સુ આનેજ
જીંદગી કેહવાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
જરાક નજર તો નાખ ,
સામે સમસાન દેખાય છે
ના વ્યવહાર સચવાય છે
ના તહેવાર સચવાય છે
દિવાળી હોય કે હોળી
ઓફીસ માં ઉજવાય છે
આ બધું તો ઠીક હતું
પણ હદ તો ત્યાં થાય છે
લગ્ન ની કન્કોક્ત્રી મળે ત્યાં
શ્રીમંત માં માંડ જવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
ફોન બૂક ભરેલા છે મિત્રો થી
કોઈક ના ઘેર ક્યાં જવાય છે
હવે તો હદ થઇ ઘર ના પ્રસંગો
પણ હાફ ડે માં ઉજવાય છે
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને ખબર નથી આ
રસ્તો ક્યાં જાય છે
થાકેલા છે બધ્ધા છત્તા
ચાલતા જ જાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
કોઈક ને સામે રૂપિયા તો
કોઈક ને ડાલર દેખાય છે
તમેજ કહો મિત્રો સુ આનેજ
જીંદગી કેહવાય છે ,
દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?
(મયુર સેઠ)
Saturday, June 26, 2010
Kal To Har Roz Ata / कल तो हर रोज आता
मौसम बदला ऋतू बदली बागो में फूल खिले, पेड़ो पर फल फले कोयल मुस्कुराई, अपने मीठे स्वर में संगीत सुनाई..फिर मौसम बदला ऋतू बदली बाग़ अब लगते है उजरे उजरे..पेड़ उदास साम सा अपने टूटे पत्तियों को समेत रहा...कोयल जो मीठा संगीत सुनाती..वक़्त के साथ उर चली..बदलाव जीवन का मौत जैसा सच..ऋतुएं तो बदलती रहेगी मौसम भी...पर कब तक उन जैसे हम भी...फिर बसंत आयेगी..फिर से जिंदगी मुस्कुराएगी..तब तक क्या जिंदगी धर्केगी..कल तो हर रोज आता है पर आज क्या कल फिर आयेगी..?
(शंकर शाह)
Friday, June 25, 2010
Kranti Ki Suruaat / क्रांति की सुरुआत
रोये बहुत रोये फिर लग गये काम में वो..पर था कोई जो रोया नहीं..आंशुओ को पीता रहा और गम से अपने क्रांति की गोदाम को भरता रहा.उसे बनना था क्रांतिवीर जो ज़माने का आवाज़ बनता या तालिबान, माओबादी, या आतंकवाद का एक थूकदान...जब अपना आवाज़ अपने को चिर के अपने तक पहुँचता है तो एक क्रांति की सुरुआत होती है..पर क्रांति की परिभासा कैसा हो वो क्रांतिवीर पर निर्भर करना है..
(शंकर शाह)
Wednesday, June 23, 2010
Chand Taro Ke Avishkar / चाँद तारो के अविष्कार
इतिहास पढ़ पढ़ कर पोंगा पंडित बन तो गया..पर आज का गवाह बनना चाहा नहीं..बुढा पीपल कहता तो है "शांत,शीतल,निर्मल बनो" पर ए/सी पंखे के निचे उकसा महत्व है सही ..चाँद तारो के अविष्कार में उलझा रहा..मै क्यों हूँ पता नहीं...बंद घर में जो भी करले घुटन तो होगा..तो चलो लगा ले चौपाल अपने आत्मा के निचे और सुनादे एक फैसला उसके हक में...पता ना कल होगा भी या नहीं......
(शंकर शाह)
Tuesday, June 22, 2010
Soch Ke Soch Par Dwandh / सोच के सोच पर द्वंध
सोचता हूँ सोच के ऊपर की क्या सोचूं, फिर सोच सोच के सोच के दायरे में कैद हो जाता हूँ, फिर एक सोच ऐसा क्यों सोचा और ये सोच आई भी तो कहाँ से..फिर सोच के सोच पर द्वंध फिर सोचना चालू..बहुत प्यारा खेल है ये सोचना भी एक बार सोच के सोच को सोच के तो देखो......
(शंकर शाह)
Friday, June 18, 2010
Mera Hona / मेरा होना
सीसे की छनक या चेतावनी अपसकुन का...हवा का वेग प्यारा संगीत या फिर आहट तूफान का..नदी की धारा जीवन की रुख या संकेत अंतिम पराव का..मेरा होना कुछ आँखों की चमक या फिर गम उनके जीवन का...सोचो सोच से हीं होता है देव असुर की उत्पत्ति मन में हमारे धारा वेग जीवन में...सोच का दरवाजा बंद फिर क्या है मोल इंसान जीवन का..........
(शंकर शाह)
Monday, June 14, 2010
Chhuk Chhuk Karti Jindagi / छुक छुक करती जिंदगी
छुक छुक करती जिंदगी के सफ़र हम एक रेलगाड़ी ...सफ़र में अनगिनत स्टेशन और हर स्टेशन कुछ नए तो कुछ पुराने सवारी...जिंदगी के डब्बे में बैठाया और फिर चल दिए..कुछ उतरते कुछ चढ़ते अविरल सफ़र चलता रहता..जब तक चल रहा गाड़ी तब तक सब अपने पराये जब रुक गई तो क्या..है येही जिंदगी दोस्तों जी लो अपने आत्मा को फिर न जाने ऊपर क्या...नीला अम्बर जब खुली आँखों से दीखता गहरा तो बंद आँखों से धुन्धोगे क्या...........
(शंकर शाह)
Thursday, June 10, 2010
Murari Lal / मुरारी लाल
मुरारी लाल सिर्फ सपने नहीं देखता वो अपने मेहनत अपने प्रतिभा से एक दुनिया बनाना चाहता है अपना....वो गाँव के गलियों को छोड़कर सहर के स्ट्रीट का छांक छान रहा है...की कोई उसके प्रतिभा को भी पहचाने...कहने को अपने मेहनत और प्रतिभा से वो एक दुनिया तो बना सकता है...पर नींव के लिए जमीन कहा से लाये..दुनिया में लाखो प्रतिभाये जन्म लेती है पर कई अपने आप को साबित कर पाते है..वक़्त को प्रतिभा की तलाश है पर वो वक़्त आयेगा कब..जब परखने वाला प्रतिभा को प्रभावित बनाएगा, प्रभावहीन नहीं.......
(शंकर शाह)
Wednesday, June 9, 2010
Mai Tumhari Saya / मै तुम्हारी साया
जब तुम दीपक मे प्रजवलीत हो रहे थे मै तुम्हारी छाया थी...जब तुम नदी थे मै तुम्हारी धारा थी..जब तुम शरीर थे तो मै तुम्हारी साया थी...तुम्हारी साया..कैसे कह सकते हो अँधेरे मै तुम्हारे साथ थी नहीं..तुम रोशन हो रहे थे मै शीतल रही...तुम चल रहे थे मैंने वेग दी..जब तुम बिखर गए मैं तुम्हारे हर कण मैं बंट गई..जन्मो जन्म का ये प्यार मेरा पर फिर भी क्या मै बेवफा सही
(शंकर शाह)
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