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MERI KAHANI

Monday, June 14, 2010

Chhuk Chhuk Karti Jindagi / छुक छुक करती जिंदगी

छुक छुक करती जिंदगी के सफ़र हम एक रेलगाड़ी ...सफ़र में अनगिनत स्टेशन और हर स्टेशन कुछ नए तो कुछ पुराने सवारी...जिंदगी के डब्बे में बैठाया और फिर चल दिए..कुछ उतरते कुछ चढ़ते अविरल सफ़र चलता रहता..जब तक चल रहा गाड़ी तब तक सब अपने पराये जब रुक गई तो क्या..है येही जिंदगी दोस्तों जी लो अपने आत्मा को फिर न जाने ऊपर क्या...नीला अम्बर जब खुली आँखों से दीखता गहरा तो बंद आँखों से धुन्धोगे क्या...........
 


(शंकर शाह)

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