जब तुम दीपक मे प्रजवलीत हो रहे थे मै तुम्हारी छाया थी...जब तुम नदी थे मै तुम्हारी धारा थी..जब तुम शरीर थे तो मै तुम्हारी साया थी...तुम्हारी साया..कैसे कह सकते हो अँधेरे मै तुम्हारे साथ थी नहीं..तुम रोशन हो रहे थे मै शीतल रही...तुम चल रहे थे मैंने वेग दी..जब तुम बिखर गए मैं तुम्हारे हर कण मैं बंट गई..जन्मो जन्म का ये प्यार मेरा पर फिर भी क्या मै बेवफा सही
(शंकर शाह)
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