एक नन्हा लडखडाता कदम जो अंगुलिओं को थाम चलना सिखा...देखते हीं देखते वही कदम डेग भरने लगता है...दुनिया से आगे निकल जाने का....अच्छा है और सही भी...अपना एक नई दूनिया तो होनी हीं चाहिए...पर तकलीफ तो तब है....जब वही कदम दुनिया समेत लेना चाहता है अपने हथेलिओं में घर के आगे दिवार खड़ा कर..क्या अपना एक दूनिया बनाने का येही एक तरीका है...
(शंकर शाह)
मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Friday, May 14, 2010
Thursday, May 13, 2010
Mastisk Ek Prayogsala / मस्तिस्क एक प्रयोगशाला
पर्वत के ऊंचाई से समुन्द्र कहता है.....समुन्द्र से फिर पर्वत कहता है...फूल भवरों से कहती है...भंवरा फिर फूल से कहता है...सवाल है क्या?
और जवाब सबके अलग अलग...हमारा मस्तिस्क एक प्रयोगशाला की तरह है जैसा सब्दो का रसायन डालेंगे वैसा विचारो का वस्तु तैयार होगा...अब ये हम पर है की...
(शंकर शाह)
और जवाब सबके अलग अलग...हमारा मस्तिस्क एक प्रयोगशाला की तरह है जैसा सब्दो का रसायन डालेंगे वैसा विचारो का वस्तु तैयार होगा...अब ये हम पर है की...
(शंकर शाह)
Wednesday, May 12, 2010
Apne pas kuchh hone ka ehsaas / अपने पास कुछ होने का एहसास हीं
अगर एक बार इन्सान मान ले की अगर वो सड़क पे पैदा हुआ होता और वहीँ बड़ा हुआ होता...उसका न माँ का पता होता न बाप का तो... उसका धर्म क्या होता....वो हिन्दू होता, मुस्लिम होता, इसाई होता या कुछ और...अपने पास कुछ होने का एहसास हीं...सबकुछ करने को प्रेरित करता है....फैसला खुद को करना है की "करना क्या है"...
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Tuesday, May 11, 2010
Aiyas grih to / ऐयाश गृह तो
एक नन्हा पेड़ किसी के क्यारी मैं आता है तो उसी वक़्त फैसला कर लेता है की ये बड़ा होगा तो फल खायेंगे...लकड़ियों से चूल्हा जलाएंगे....और बुड्ढा हो जायेगा तो इसकी लकड़ों से दरवाजा पलंग कुर्सी बनायेंगे...और जब उसी पेड़ पर कोई और हिस्सा ज़माने लगता है तो....इसी तरह धर्म... नैतिकता के नाम पर अनैतिक कार्य करते जाओ उपरलोक में ऐयाश गृह तो तैयार है हिन् न...और......
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Monday, May 10, 2010
Purnaviram baki hai / पूर्णविराम बाकि है
ग्रीष्म में सूर्य से, बर्षा में बारिश से, नदी से बाढ़ में, हवा से तूफान में...कितना अजीब है जिसके बगैर जिंदगी न हो..उससे भी कितना परेशान हो जाते है न...सायद ऐसे हिन् जब माँ बाप बूढ़े हो जाते हैं तब...इस सोच पर सोचना येहीं ख़तम नहीं हुआ..............पूर्णविराम बाकि है..
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Saturday, May 8, 2010
Maa too to hai na / माँ तू तो है ना
माँ तू तो है ना,
इस रेगिस्तान सी दुनिया,
जिंदगी के भूल भुलैया मैं,
रास्ता तलाश रहा हूँ,
पथप्रदर्शक की तरह
माँ तू तो है ना !
मैं नहीं जानता माँ
इस दुनिया का इशारा
आसमान का
शासक कौन है,
मेरे दुनिया की भगवान
माँ तू तो है ना !
बुजुर्गो के सम्भलते
कदम लाठियों के सहारे,
मेरे नन्हे कदम
की सहारा,
माँ तू तो है ना !
देखता हूँ बूढ़े पेड़ो को
जमिन्दोंज होते हुए,
मेरे कली सी जीवन
का माली,
माँ तू तो है ना !
भागता हूँ, दौरता हूँ,
गिरता फिर संभल जाता
थक जाता हूँ माँ,
छाँव का नीला चादर सा
माँ तू तो है ना !
मेरे भावनाओ के
उछलकूद को कोई
पागलपन कहे,
मेरे पागलपन को पुचकारती,
माँ तू तो है ना !
दुनिया की ख्वाहिश
मुझे कल्पवृक्ष
नहीं चाहिए
मेरे ख्वाहिशो की कल्पवृक्ष
माँ तू तो है ना !
माँ तू तो है ना !
(शंकर शाह)
* यह कविता मेरी माँ को समर्पित....
Thursday, May 6, 2010
Gam aur Khushi / गम और ख़ुशी
कितनी बार सोचता हूँ की कितने कवि साये को कितना बेवफा साबित कर जाते है...पर साये का त्याग को देखिये हर पल साथ होता है...अँधेरे मैं बस महसूस नहीं कर पाते...क्योकि मै ख़ुशी को हिन् महसूस करना चाहता हूँ गम को नहीं...हमारा साया गम और ख़ुशी की तरह है....जबतक ख़ुशी नुमा उजाला साथ है तो गम की फिकर कहाँ और गम आया तो घबरा गये...गम और ख़ुशी का रिश्ता अटूट है...जैसे रौशनी और साये का..फिर दोष किसका...?
(शंकर शाह)
Wednesday, May 5, 2010
Maa Papa Apka yaad Bahut ata hai / माँ पापा आपका याद बहुत आता है
एक शब्द है जो खामोश लम्हों मैं बहुत सताता है...एक प्यास है जो हर बार बढ़ जाता है...इस रेगिस्तान सी दुनिया मैं एक साया है जो...नीला चादर बनकर साथ निभाता है...हार जाता हूँ जब खुद से...एक आवाज़ है जो हौसला दिलाता है...भगवान करे मेरी उम्र भी अपलोगो को लग जाये...माँ पापा आपका याद बहुत आता है.....
Tuesday, May 4, 2010
Dhokha / धोखा
मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Monday, May 3, 2010
Har Niswarth Bhavna / हर निस्वार्थ भावना
आज मैं बहुत उदास रहा...सोचता रहा की "मैं जो सोचता हूँ क्या सही है".क्या "खुद" से दुनिया बदलने की बात सही है...फिर ख्याल आया क्या नदी भी सोच कर चलती होगी की खाड़े समुन्द्र को मीठा कर देगी...क्या पतंग भी सोचकर चलता होगा एक दिन अपने प्यार से अग्नि को भी सीतल कर देगा...क्या पक्षी अपने बच्चे दाना देती है ये सोचकर कि ये बड़े होकर मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे...हर निस्वार्थ भावना के पीछे त्याग होता है...बस जरूरत है सामर्थ्य की...
(shankar shah)
Friday, April 30, 2010
Mera Manzil Kya Hai / मेरा मन्जील क्या है
अचानक मेरे मन एक ख्याल आया की मैं किसके पीछे भाग रहा हूँ.. मेरा मन्जील क्या है...मुझे जिंदगी मे कामयाबी मिल जाये और सुख सुबिधाये क्या येही मेरी मन्जील है...सवाल पेचीदा है और जबाब भी नहीं मिला...हमारा जिंदगी एक पतंग की तरह..हम बच्चे..उसकी उड़ान हमारे महत्वकान्छाओ की तरह और उसका ठहेरना हमारी किस्मत..एक अंधी दौड़ है जो हम दौड़ रहे है..कई निशाने बनाके...
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Thursday, April 29, 2010
Sach aur Jhoot ka faisla koun karta hai / सच और झूठ का फैसला कौन करता है?
सच और झूठ का फैसला कौन करता है? चोर जब चोरी करता है सोचता है सामने वाले पास पैसा है और मेरे पास गरीबी भगवान का मर्जी है लुट लो...आतंकवादी-ऊपर वाला के लिए तो कर रहे है...साहूकार- हमारा धर्म है और समाज सेवा तो करते तो है हीं न.सब का अपना अपना विचार है अपने को सही साबित करने के लिए....हम अपने विचार को वहीं पूर्णविराम दे देते है जहा वो हमे सही साबित करता हो...
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Wednesday, April 28, 2010
Dharm Aur Ashtha ka Rasta / धर्म और आस्था का रास्ता
कभी सोचा है मैदान के बीचो बीच से एक रास्ता क्यों नजर आता है...या कभी सोचा की मैं उसपे हिन् क्यों चला...किसी ने मुझसे पूछा और कह दिया "दुसरे चलते है सो मैं भी उसी का अनुसरण कर लिया"...कभी नहीं सोचा की ऐसा मैंने क्यों किया.हो सकता था की मैं अगर रास्ता बदलता तो सायद राह और आसान हो जाता.पर एक डर था की अगर मैं राह बदलता हूँ तो सायद भटक न जाऊ या आगे कोई कठिन मोड़ न आ जाये...इसी तरह धर्म और आस्था का रास्ता है...सब सोच समझ के दरवाजे को हम बन्द कर बस उसका अनुसरण करते है..दुसरे कर रहे है न...तस्सली तो है..
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Tuesday, April 27, 2010
Maa Tu Bahut Mahan Hai / माँ तू बहुत महान है
चूल्हे के पास बैठी धुओं से लड़ती...आँखों मैं पानी और होंठों पे मुस्कान..दिन भर का भाग दौर फिर थक हार कर...मेरा मुन्ना साहब बन जाये...जीकर हर बातो पर...चोट लगी मुझे आंशु तेरे आँखों पर..भूखे रहकर मेरे किस्मत को संवारा..
माँ तू महान है.कबुल कर लेना माँ ५०० रुपये महीने का जो अब तेरे नाम है..माँ तू बहुत महान है..
(शंकर शाह)
माँ तू महान है.कबुल कर लेना माँ ५०० रुपये महीने का जो अब तेरे नाम है..माँ तू बहुत महान है..
(शंकर शाह)
Monday, April 26, 2010
Jindagi ek pathsala / जिंदगी एक पाठशाला
जिंदगी एक पाठशाला की तरह है. और हम एक बिध्यार्थी...हर रोज एक नए विषय पे ज्ञान प्राप्त करते है और कभी कभी उस विषय पर प्रुनावृधि भी..सोच का दायरा जितना बढ़ाते है उतना ज्ञान अर्जित करते है...पर एक मोड़ पर आ कर हमारा सोच उस घरे के सामान हो जाता है जब नए थे सीतल जल पिलाया पुराना हुआ तो किसी काम का नहीं..पुराना होने का मतलब यहाँ उम्र से नहीं है...पुराना होने का अर्थ यह है की हम अपने सोच के घड़े पर अहंकार की धुल मिट्टी जम जाने देते है...
(शंकर शाह)
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