माँ तू तो है ना,
इस रेगिस्तान सी दुनिया,
जिंदगी के भूल भुलैया मैं,
रास्ता तलाश रहा हूँ,
पथप्रदर्शक की तरह
माँ तू तो है ना !
मैं नहीं जानता माँ
इस दुनिया का इशारा
आसमान का
शासक कौन है,
मेरे दुनिया की भगवान
माँ तू तो है ना !
बुजुर्गो के सम्भलते
कदम लाठियों के सहारे,
मेरे नन्हे कदम
की सहारा,
माँ तू तो है ना !
देखता हूँ बूढ़े पेड़ो को
जमिन्दोंज होते हुए,
मेरे कली सी जीवन
का माली,
माँ तू तो है ना !
भागता हूँ, दौरता हूँ,
गिरता फिर संभल जाता
थक जाता हूँ माँ,
छाँव का नीला चादर सा
माँ तू तो है ना !
मेरे भावनाओ के
उछलकूद को कोई
पागलपन कहे,
मेरे पागलपन को पुचकारती,
माँ तू तो है ना !
दुनिया की ख्वाहिश
मुझे कल्पवृक्ष
नहीं चाहिए
मेरे ख्वाहिशो की कल्पवृक्ष
माँ तू तो है ना !
माँ तू तो है ना !
(शंकर शाह)
* यह कविता मेरी माँ को समर्पित....
Nice Lines.....!!
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