ग्रीष्म में सूर्य से, बर्षा में बारिश से, नदी से बाढ़ में, हवा से तूफान में...कितना अजीब है जिसके बगैर जिंदगी न हो..उससे भी कितना परेशान हो जाते है न...सायद ऐसे हिन् जब माँ बाप बूढ़े हो जाते हैं तब...इस सोच पर सोचना येहीं ख़तम नहीं हुआ..............पूर्णविराम बाकि है..
(शंकर शाह)
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