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MERI KAHANI

Thursday, June 3, 2010

Tum Graho Ke Prarikrama me / तुम ग्रहों के परिक्रमा में

मै जमीन बन रहा था और ख्वाहिसे आसमान बन रहे थे...मै एक कली की तरह आकार ले रहा था और तुम सिखर चट्टान बन रहे थे..तुम ग्रहों के परिक्रमा में सूरज बन रहे थे...और मैं नदी धारा की तरह प्रवाहित हो रहा था..तुम अपने लोलुप हाथो में तारो को समेत रहे थे और मै अहिस्ता धड़क रहा था....और एक दिन मै नए सफ़र पर निकल लिया..तुम्हारी मुट्ठी खुली  देखा तो वो जुगनू था...वो भी उर चला एक नए तलाश में....
 


(शंकर शाह)

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