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MERI KAHANI

Thursday, May 6, 2010

Gam aur Khushi / गम और ख़ुशी

कितनी बार सोचता हूँ की कितने कवि साये को कितना बेवफा साबित कर जाते है...पर साये का त्याग को देखिये हर पल साथ होता है...अँधेरे मैं बस महसूस नहीं कर पाते...क्योकि मै ख़ुशी को हिन् महसूस करना चाहता हूँ गम को नहीं...हमारा साया गम और ख़ुशी की तरह है....जबतक ख़ुशी नुमा उजाला साथ है तो गम की फिकर कहाँ और गम आया तो घबरा गये...गम और ख़ुशी का रिश्ता अटूट है...जैसे रौशनी और साये का..फिर दोष किसका...?
 


(शंकर शाह)

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