जिंदगी एक पाठशाला की तरह है. और हम एक बिध्यार्थी...हर रोज एक नए विषय पे ज्ञान प्राप्त करते है और कभी कभी उस विषय पर प्रुनावृधि भी..सोच का दायरा जितना बढ़ाते है उतना ज्ञान अर्जित करते है...पर एक मोड़ पर आ कर हमारा सोच उस घरे के सामान हो जाता है जब नए थे सीतल जल पिलाया पुराना हुआ तो किसी काम का नहीं..पुराना होने का मतलब यहाँ उम्र से नहीं है...पुराना होने का अर्थ यह है की हम अपने सोच के घड़े पर अहंकार की धुल मिट्टी जम जाने देते है...
(शंकर शाह)