हंसना पृथ्वी जैसा एक आकार अपने चेहरे पे..और पृथ्वी जैसा विभिन्ताये लिए...किसी के दुःख पे हंसा तो उसका दुःख बाँट लिया...किसी के खुसी पे हंसा तो उसके ख़ुशी को एहसास कर लिया...किसी ने इज्जत उतारा तो हंसके सहमति दे दिया की उतर गया..कितना अजब है ना...पर रोना माँ के चेहरे जैसा है...एक उदास चेहरा जो अपने कलेजे को जमाना नाम के कसाई के हवाले कर रही हो...पर हम पृथ्वी जैसे गोलाई लिए......:)
(शंकर शाह)
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