LATEST:


MERI KAHANI

Saturday, May 29, 2010

Majboori Ka Chola / मजबूरी का चोला

जब इंसानियत "बाद" को देखता हूँ...तो सोचता हूँ बुद्हम: सरनम: गच्छामी हो जाऊ तो कभी सोचता हूँ शिव तांडव करू....और इस विचार रूपी सोच के सोच पर बहुत आगे निकल जाता हूँ...और वास्तविकता वहीँ वहीँ रह जाता है...सवाल यह नहीं है की कुछ इन्सान इंसानियत को "बाद" क्यों कर रहा है...सवाल ये है की मैं क्या करू ?....और इसी तरह एक विषय को लेके सोच और विचार का द्वंध में हार जीत का फैसला करने में लग जाता हूँ...जीता हारा कौन उससे कोई लेना देना नहीं मैं कितना जल्दी उस द्वंध से निकल पाया वो मायने रखता है....कभी मजबूरी का चोला पहेनकर तो कभी केह्कर की "मैं क्या कर सकता हूँ".......
 


(शंकर शाह)

No comments:

Post a Comment

THANKS FOR YOUR VALUABLE COMENT !!