मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Tuesday, August 23, 2011
Monday, July 11, 2011
Gungunati Nahi Hai / गुनगुनाती नहीं है
बर्षो बाद आज गुनगुनाने का मन हुआ, मौसम के मिजाज के अनुसार...भीगना चाहा पहली बारिश के बूंदों से पर बीमार पड़ जाने का ख्याल आया, फिर बीमारी से घर बैठ जाने का फिर एक दिन का छुट्टी, मन न जाने एक ख्याल के सवाल से कितने हिसाब कर डाले ...और हिसाबो के गिनती में बारिश थम गई..बहुत कोशिश किया की बारिश के बूंदों के गुनगुननाहट में अपने सुर से एक संगीत गाऊं.. पर वो सुर वो संगीत नहीं आ पाया जो बचपन में गले से होते पैरो से झलक जाया करता था और अब बारिश नाचती , गुनगुनाती नहीं है...शायद मै बहुत आगे निकल आया हूँ जहा से बचपन के गलियारों बहुत संकरे होने लगे हैं....
शंकर शाह
Thursday, May 12, 2011
Atma Se Utar Kar / आत्मा से उतर कर
कई बार में आत्मा से उतर कर जंगल में गया..कमाल देखिये आत्मा से उतर कर जितनी बार सफ़र किया...मैंने जंगल के राजा के तरह विचरण किया...पर जब भी लोटा उस सफ़र से वो जिंदगी के किताब एक काला अक्षर के रूप में अंकित हो गए...जब भी यादों के पन्ने पलटता हूँ...एक दर्द भरा चुभन के अलावा कुछ नहीं मिलता..
(शंकर शाह)
Saturday, May 7, 2011
Mere galati Ke Paksh me / मेरे गलती के पक्ष में
मै कई बार गलतियाँ कर देता था बचपन में जो लाजिमी है हर बच्चे करते है...पर हर बार गलती के बाद महसूस होता था की गलत है पर दिमाग के कोने से एक जबाब तैयार हो जाता था मेरे गलती के पक्ष में....मै सोचता था ऐसा क्यों है...पर सिर्फ ये मेरे साथ नहीं था हर किसी के जिंदगी के वाक्या के साथ ये जुदा हुआ है मेरे दोस्तों के साथ भी ऐसा था...और गलतिओं का सिलसिला अपरोक्ष रूप में चलता रहा...लेकिन मजे की बात यह है की जिस गलती पे पापा का मार खाया आज तक उस गलती दोहरा नहीं पाया...किसी चीज को हृदय से स्वीकार करने के लिए जरूरी है उस चीज के प्रति श्रधा और उसके विप्ररित न जाने का डर...
(शंकर शाह)
Sunday, May 1, 2011
जैसे किसी भी जन्म का प्रमाणपत्र मरण उसी तरह हमारे पतन के पीछे हमारा अज्ञानरूपी ज्ञान छुपा हुआ है...हम बुद्धिजीविता के ढोंग में खुद के लालच को दुसरे पे थोपते है...एक नम्र निवेदन " अगर आप ज्ञानी है तो ज्ञान का सद्य्प्योग उपयोग कीजिये...आजीवन ज्ञान को प्राप्त करना और ज्ञान को बांटना दो आदमियो का काम है १. शीक्क्षक २. बेकार
(शंकर शाह)
Sunday, April 24, 2011
Bazaar / बाज़ार
बाज़ार में मेरा भी एक दुकान था...बोली भी लग रहे थे और में बेचने के लिए मैंने विचारो को रख दिया...बाज़ार है!भावनाओ का वहां क्या जरूरत...जैसा खरीरदार वैसा विचार...पर कुछ ऐसे मौके आये जब खरीददार के जगह पे विक्रेता मिले..जो जीवन के भूख में कामधेनु थे...मैंने सोचा कुछ लेलु उनसे ताकि संस्कार के फेहरे में कुछ ताजगी भर पाउ...पर जितनी बार दिल के जेब खोला, देखा तो खाली था!!!
(शंकर शाह)
Friday, April 15, 2011
बहुत दिनों के बाद सोचा चलो आज देखे दिन से रात का मिलन...जो कभी हमारे दिनचर्या का हिस्सा हुआ करता था...साथियों के साथ खेल का एक हिस्सा हुआ करता था वो अब परीक्षा के पल की तरह थकाने लगा है...जाने और नजाने कई फसलो को तय करने के बाद महसूस होता है की...लौटना चाहिए नीले चादर के निचे घासों से छुपनछुपाई खेलने... उन हंसो को अपना बनाने का फिर से मन करता है जो थके हारे घर लौटते वक़्त हमसे बतिया लिया करते थे...पंडित जी के चेहरे बदल गए है पर अब भी वहां बच्चो मेला लग जाता है...सोचता हूँ फिर से हम उस मेले में सामिल हो ले...
(शंकर शाह)
Monday, March 28, 2011
Sapno Ki Pari / सपनो की परी
चंदामामा के थपेड़ो के साथ हवाओ में घुलने लगता है एक खुसबू...घर की खिड़कीयां बताने लगाती है आहट किसी के होने का...किसी की खामोश हंसी दिल के धडकनों में लाल गुलाब बनने लगता है...और रात ओढा जाता है एक चादर खामोसी से मीठे स्वप्नों का..सपनो की परी हररोज चली आती है एक नए रूप में ...पर हकीकत का दिन हर बार मायुश कर देता है...सुना है परियां होती है...पर सायद कलियुग की वजह से आती नहीं जमीन पर ....
(शंकर शाह)
Wednesday, March 23, 2011
Sochta Hoon Wo Pal Kaisa Raha Hoga / सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
सोचता हूँ वो पल भी कैसा रहा होगा
जब औरत बच्चे, बूढ़े, जवान
हर एक ने दिल का सुना होगा
और जुल्म नहीं का विचार
जब हतौड़ा बना होगा !!
सोचता हूँ वो पल भी कैसा होगा
जब मै, तुम, संप्रदाय विभिन्ताओ
का आवाज न होगा जब एक सुर
सबका और एक तान रहा होगा !!
सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
जीने का न चाहत रही होगी
न मर जाने का डर रहा होगा
जब अपने से ऊपर देश रहा होगा !!
जब औरत बच्चे, बूढ़े, जवान
हर एक ने दिल का सुना होगा
और जुल्म नहीं का विचार
जब हतौड़ा बना होगा !!
सोचता हूँ वो पल भी कैसा होगा
जब मै, तुम, संप्रदाय विभिन्ताओ
का आवाज न होगा जब एक सुर
सबका और एक तान रहा होगा !!
सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
जीने का न चाहत रही होगी
न मर जाने का डर रहा होगा
जब अपने से ऊपर देश रहा होगा !!
सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
भूख की कहा फिकर थी उनको
न उनको किसी से बिछारने का डर रहा होगा
मौत हीं नींद थी फिर कहा वो लड़ने डरा होगा !!
सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
चिताओं के सेज पे जब अपनों का
आकार जला होगा, फिर भी न रोक सका
कदम वो अभिमान कैसा रहा होगा
सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा !!
सोचता हूँ मेरे लालसा भरी बहकते
कदम देख, उन सब वीर वीरांगनाओं का
कितना दिल जला होगा, जब मिलेंगे मुझसे
मेरे पास उनको कहने को क्या होगा,
सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
शहीद दिवस पे भगत सिंह, राजगुरु और शहीद सुखदेव को कोटि कोटि नमन!!!!!
(शंकर शाह)
Saturday, March 19, 2011
दुनियादारी के साथ भागते कदम और छुट रहे अपनों से हम...हम से मै हो रहा अपने आप के भीतर जरूरी हो जाता है एक और होलिका दहन की....और दहन के बाद जश्न...मै को जलाकर कोशिस करूँगा की बुत बन रहे "हम" को फिर से अपने अन्दर ला सकू....ताकि धरती सी हाथ मै चाँद का कटोरा इन्द्रधनुषी रंग मुझपे बिखेर सके.. ये बिना सोचे हुए की सामने वाले की रंग न बदल जाये....
"होली के शुभअवसर पर आप सभी को परिवार सहित ढेरो सुभकामनाये"....
"होली के शुभअवसर पर आप सभी को परिवार सहित ढेरो सुभकामनाये"....
(शंकर शाह)
Saturday, March 5, 2011
Mere Yaado Ko Kaise Mitaogi / मेरे यादो को कैसे मिटाओगी
चाहे जला दो तस्वीर मेरा, चाहे मेरा ख़त जला दो,
पर ये तो बताओ, मेरे यादो को कैसे मिटाओगी,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरा भी एक घर है
अब बताओ मेरी जान उसे कैसे जलाओगी.....
पर ये तो बताओ, मेरे यादो को कैसे मिटाओगी,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरा भी एक घर है
अब बताओ मेरी जान उसे कैसे जलाओगी.....
(शंकर शाह)
Wednesday, March 2, 2011
Mai Kahan Tak Jinda Hoon / मै कहा तक जिन्दा हूँ
कल से आज के बिच में बहुत कुछ बदलते देखा...ज़माने बदलने के साथ हम बदल रहे है या हमारे बदलने जमाना बदल रहा है? बदलाव है और क्यों मालूम है, पर सोच पर एक रंगीन पट्टी है बहाने का..कल जहाँ मंदिरों में भगवान बसते थे अब मंदिरों के खुले प्रांगन से निकल दिल के संकरा गलियो में बसने लगे है...और पूर्वजो का देवघर छोटे हो रहे कुतुम्बन सा, बक्से में बंद होने लगे है..मेरे लिए मायने यह है की ,मै कहा तक जिन्दा हूँ जिदगी के साथ बदलते समय और इंसान के बिच में ..महाशिवरात्रि के अवसर पर सभी दोस्तों को शुभकामनाये
(शंकर शाह)
(शंकर शाह)
Wednesday, February 23, 2011
Galib Khyal Jo Achha hai / " ग़ालिब " ख्याल जो अच्छा है
कई बार सवाल होता है ..जो जी रहे है क्या येही जिंदगी है ..सवाल खुद से बहुत सारे सवाल करता रहता है ..और जबाब छुपान छुपाई खेलता है भूलभुलैया रूपी जबाब मे..जो भी हो हम भी एक मोड़ पर फैसला कर लेते है ..जो पल है जिओ...आखिर खुद को धोखा देने का "ग़ालिब" ख्याल जो अच्छा है..
Monday, February 14, 2011
Darpan Dikha Raha / दर्पण दिखा रहा
लम्हे यूँ भागते रहे जैसे उसके पर निकल आये हो...बचपन कब ढल के जवानी हुआ और जवानी धीरे धीरे बुढ़ापे की और...बंद दरवाजा करके बहुत बार सोचता हूँ बुढ़ापे की आहट मेरे दरवाजे पर न हो...अब तो घर के बुजुर्ग भी तो नहीं रहते मेरे साथ...फैसलों के फासले में जवानी बहुत बड़ा फासला बना चूका है...अब तरेरती आंखे बच्चो की दर्पण दिखा रहा है..और दीवाल में टंगे अपने ठहाके लगा रहे है..
(शंकर शाह)
Saturday, January 29, 2011
Maa Bharti / माँ भारती
सपनो के रंगीनिओं में
दिन के भागम भाग से थक कर भी
अब कोई अप्सरा नहीं आती...
रात अब बचैनिओं के
आंचल में सर रख कर,
करवटे बदलने लगा है...
दिन के भागम भाग से थक कर भी
अब नींद नहीं आती...
दिल के अब कई विभाग हो गए है...
एक कहता है वो कर डालो जो चाहते हो..
एक कहता है नहीं मत करो कुछ...
जिओ जैसे दुनिया चल रहा है...
वरना घर के लोग हीं
तुम्हे राजनीती का हिस्सा बना देंगे...
एक हिस्सा अब भी कह रहा है
निकल घर से रोंप दे एक पौधा क्रांति का,
जुगनू किसी के घर को रौशन नहीं करते ,
बन जा विष्फोट वतन का,
पर एक हिस्सा कह रहा है
निकल घर से रोंप दे एक पौधा क्रांति का,
जुगनू किसी के घर को रौशन नहीं करते ,
बन जा विष्फोट वतन का,
पर एक हिस्सा कह रहा है
सो जा नींद आ जाएगी
तुझे क्या , क्यों में झमेले में पड़ता है...
दोस्तों दुआ करो नींद आ
जाये मुझे, आपकी तरह...
कहीं सुना न सोने वाला पागल हो जाता है!!
(शंकर शाह)
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