बर्षो बाद आज गुनगुनाने का मन हुआ, मौसम के मिजाज के अनुसार...भीगना चाहा पहली बारिश के बूंदों से पर बीमार पड़ जाने का ख्याल आया, फिर बीमारी से घर बैठ जाने का फिर एक दिन का छुट्टी, मन न जाने एक ख्याल के सवाल से कितने हिसाब कर डाले ...और हिसाबो के गिनती में बारिश थम गई..बहुत कोशिश किया की बारिश के बूंदों के गुनगुननाहट में अपने सुर से एक संगीत गाऊं.. पर वो सुर वो संगीत नहीं आ पाया जो बचपन में गले से होते पैरो से झलक जाया करता था और अब बारिश नाचती , गुनगुनाती नहीं है...शायद मै बहुत आगे निकल आया हूँ जहा से बचपन के गलियारों बहुत संकरे होने लगे हैं....
शंकर शाह
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