LATEST:


MERI KAHANI

Tuesday, September 20, 2016

Do Ankhen

कहीं एक खिड़की है जो खुली रहती है मेरे इन्तज़ार में... उसी के इन्तज़ार ने मुझे यायावर और मेरे सफ़र को रंगीन बना दिया है ... कभी मिले तुम्हें दो आँखें उस खिड़की पे राह तकते मेरा ...तो कह देना ...ये कुछ हसीन कैन्वस है तुम्हारे इन्तज़ार और उसके सफ़र के बीच का !

शंकर शाह

Sunday, February 7, 2016

Diwali / दिवाली

मेरी नजरे तंगी है तुम्हारे खिड़की पे और सांसो का आना जाना तुम्हारे दरवाजे होकर गुजर रही है. 
मिलाओ नजर तो फिर इश्क़ कर लूँ  की अभी अभी दिल के कोने में एक दिवाली की रात हुई है.... 

शंकर शाह 

Wednesday, May 28, 2014

एक रात बैठूँगा सर्द परे रिश्तो के बिच...और तापुन्गा उसे पुराणी ख्यालो से... जलते दिलो के बिच से उठाऊंगा कुछ पलों को अंगीठी बनाके और रख दूंगा....एक बार फिर.....एक रात....सर्द पड़े हमारे रिश्ते को सेंकने के लिए.....

शंकर शाह

Monday, February 24, 2014

Aatmgyan / आत्मज्ञान

मै हूँ कई रहस्यो के कई परतो में लिपटा हुआ। 
कभी खुलेगा क्या ये परत, या कोई घाव बन रिसेगा और कर देगा बीमार। या खुद हिन् पर्यास करूँगा और खोलूँगा खुद पे चडे परतो को और पा लूँगा आत्मज्ञान या कोई आयेगा और उघेरेगा करेगा सल्य चिकीत्सा और उघेरेगा एक एक परतो को। 
है उम्मीद की एक दिन खुद के खोज मे,  रहस्य नहीं "मै हूँगा"।

शंकर शाह

Monday, February 17, 2014

Atma Katha

सोचता हूँ कभी लिख दू आत्म कथा फिर झूठ फरेब से उतरता है कुछ शब्द पन्नो पे। फिर कहीं खालीपन सा झूठा सा लगता है सब। सुना है कहीं, आइना सब जानता है पर मेरे और आइने के बिच कहीं तुम बैठी हो। एक सच की मै झूठा हूँ, एक कडवी सच्चाई की तुम एक टूटी पुलिया हो मेरे और झूठ के दुरिओन के बिच।

शंकर शाह

Saturday, December 21, 2013

Jugnoo / जुगनू

सुना है टेलीपेथी से कि तुम्हारी मन कि नजरे भी टकटकी लगाये रहती है दरवाजे पे..... कमाल है, मेरे मन कि नजरे भी जुगनू बन के उडते रहते है तुम्हारे करीब … अब निकलो भी घर से बिना आहट के कि प्यार के नजर में ज्वार भाटा है.…


शंकर शाह    

Saturday, December 7, 2013

Matlabi Rishte / मतलबी रिस्ते

मै फिर आउंगा, गिरे पत्ते और ओश कि बूंदो कि तरह, कभी किसी के चूल्हे में जलकर आ जाउंगा काम, कभी मिल जाउंगा जमीन में और खाद के साथ मिलकर फ़ोटो सिंथेसिस प्रक्रिया में खुद को पाउँगा । `मै आउंगा, रहूँगा विकल्प बनके मतलबी रिस्तो के बिच और उसको और सींचूंगा अपने होने से ताकि तुम्हारा मतलब जिन्दा रहे और  उसके बिच मै ।

शंकर शाह  

Monday, November 18, 2013

मुझे किसी दायरे में ना बांध ये मेरे दोस्त। मै भी मिज़ाजे मौसम हूँ क्या पता कब बदल जाऊं।
 


शंकर शाह

Friday, November 8, 2013

कमाल कि आविष्कार हो कुदरत का ....मुस्कुराती तुम हो और दिन हमारा निखर जाता है !!!!↚
शंकर शाह

Monday, October 21, 2013

Chhodo Na Wo Kal Ki Batein / छोड़ो न वो तो कल की बातें थी

कभी पुराने खतों को खोल कर मुस्कुराई तो होगी ... शब्द नहीं मिले होंगे उन खतों में ....ना जाने क्या था, खुद उतर जाते थे पन्नो पर उछलते कूदते बुद्धे की तरह ... खोलके देखो पुराने खतों को जब रोने का दिल करे किसी कारन, सच मानो तुम्हारे आँशु मुस्कराहट बन थिरक जायेंगे तुम्हारे होंठो पर ...छोड़ो न वो तो कल की बातें थी !!!! पर सच है की हंसने का वजह भी वही कल है…

शंकर शाह

Wednesday, August 7, 2013

Harddisk / हार्डडिस्क

मै डरता हूँ, इंसान के खाल में, मेरा मौजूदगी क्या है, एक सवाल है .... मुझे सिकायत नहीं लोगो से या भीड़ से ..... मेले का क्या, चींटियो के भी तो मेले है लगते है .... पता नहीं लोगो की ऑंखें सावन भादो किसी के प्यार में हीं क्यों होती है ...  मेरे हिस्से में,  ज्वार-भाटा भावनाओ का सही नहीं ....कितना अच्छा होता न अगर मेरा दिमाग RAM होता जीवनचक्र का हार्डडिस्क नहीं ...   


#शंकर शाह

Tuesday, April 23, 2013

Na Jane Kab Tak / न जाने कब तक

तुम्हारे नजरो से चुराकर रंग, मैंने रंग लिए है मैंने चेहरे अपने ….देखो! ये धोखा नहीं है, ये तो रंग है बदलते दुनिया में, मैंने सिर्फ चेहरे हिन् रंगे है, तुम्हारे मनचाहे रंगों से… न जाने कब तक, ये समझौते की जिंदगी और मुखौटे की आड़ में एक तन्हाइ....न जाने कब तक!

शंकर शाह

Monday, April 15, 2013

Swaal / सवाल


मै सवालो के घेरे में कैद हो के रह गया हूँ ....जब तक वह एक सवाल का जबाब खोजता हूँ तब तक उस सवाल के मायने बदल गए होते है.."सवाल" सवाल अगर पथ है तो जबाब भूल भुलैया..जब सब बाधाओ को पार कर मै पहुँच जाता हूँ जवाब के करीब तो सवाल फीर से के सवाल कर बैठता है...जानता नहीं ये सिलसिला कबतक चलता रहेगा पर सवाल जबाब नामक बिल्लीओं के बिच में जिंदगी बन्दर बन के बैठा है…जरूरते लोगो की, मुझे उनके बिच, मेरे जिंदगी को कन्धा दे रखा है वरना बिल्लियाँ लडती नहीं और बन्दर महान नहीं होता ।

शंकर शाह    

Saturday, April 13, 2013

Rahashyamayi Dunia / रहश्यमयी दुनिया

एक रहश्यमयी दुनिया है, जहाँ कुछ दिनों से हर रोज़ पहुच जाता हूँ, कोई है जो मिलता है अब हररोज़ मुझे, वो मेरे खामोश कविता की कल्पना नहीं है, कुछ है तो है उसमे, जो मै सिर्फ सुनता हूँ उसे जब वो बोलती है, अच्छा लग रहा है अब मेरे शब्द कागज़ पे सिर्फ उतरते नहीं बतियाते भी है और बिखरते है रंग बनके, जैसे इन्द्रधनुषी सतरंग जो अब ओझल होते नहीं मेरे आँखों से,

शंकर शाह 


Saturday, March 2, 2013

Nashaa / नशा

रात भर सर्द हवाओं में तुम्हे ओढ़े रहा। आंख कैमरा बन कैद करता रहा तुम्हे, चाँद बनकर तुम भी तो इठला रही थी। अंगुलियों ने नजाने कितने गीत लिख डाले आसमान को लैटरपैड बना। सारी रात तुम गुनगुनाती रही और महकती रही सांसो में। एक नशा सा है तुम्हे देखना हथेलियों बिच और गले लगा लेना तुम्हारे ख्यालों को। सुबह पक्षिओ के गीत और पत्तियों पे चमकते ओश की बुँदे गवाह है मेरे हसीं रात का।  सुबह अभी भी नशे में है और में भी, फिर रात की इंतज़ार में।

शंकर शाह