कभी
पुराने खतों को खोल कर मुस्कुराई तो होगी ... शब्द नहीं मिले होंगे उन खतों
में ....ना जाने क्या था, खुद उतर जाते थे पन्नो पर उछलते कूदते बुद्धे की तरह
... खोलके देखो पुराने खतों को जब रोने का दिल करे किसी कारन, सच मानो
तुम्हारे आँशु मुस्कराहट बन थिरक जायेंगे तुम्हारे होंठो पर ...छोड़ो न वो
तो कल की बातें थी !!!! पर सच है की हंसने का वजह भी वही कल है…
शंकर शाह
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