अब ख़ुद के जख्म पे रोये जा रहे है,
“माँ भारती ” रोती भी न तो कैसे !!
खुदा से जिंदगी मांगे भी तो कैसे,
मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
अब ख़ुद के जख्म पे रोये जा रहे है,
“माँ भारती ” रोती भी न तो कैसे !!
खुदा से जिंदगी मांगे भी तो कैसे,
सांसे आखरी है,
ReplyDeleteगम तो बस इतना है,
" these two lines are core of the poem.....nice writing"
regards