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MERI KAHANI

Friday, March 20, 2009

KUCH DARD LABO PE/ कुछ दर्द है लबो पे

समस


लहरों से मिलकर न वोह बह सके न हम,
एक दूजे के दिल में न वोह रह सके न हम,
जीत लेते आसमा एक दिन लेकिन, पलकों के खामोशी को
होतो से न वोह कह सके न हम…


हम जी रहे थे उनका नाम लेकर,
वो गुजरते थे हमारा सलाम लेकर,
एक दिन वो कह गए भुला दो हमको,
हमने पूछा कैसे?
वो चले गए हाथ में जाम देकर


कांच को चाहत थी पत्थर पाने की,
एक पल में फिर टूटकर बिखर जाने की,
चाहत बस इतनी थी उस दीवाने की,
अपने टुकडो में तस्वीर उसकी साजन की,


हर नज़र को एक नज़र की तलाश है,
हर चहरे में कुछ तोह एह्साह है,
आपसे दोस्ती हम यूं ही नही कर बैठे,
क्या करे हमारी पसंद ही कुछ ख़ास है

भेज कर पैगाम
हमने आपको याद किया है ,
फिर ना कहना आपको
नज़रंदाज़ किया है .
ना शिकवा न कोइ बहाना होगा ,
इस स्कैर्प की कसम आपको अभी मुस्कुराना होगा

जब हम ने उनसे पूछा ,
सपना क्या होता हैं तो उनहोंने कहा ,
बांध आँखों में जो अपना होता हैं ,
खुली आँखों में वोही सपना होता हैं

खुशबू तेरी दोस्ती की मुझे महका जाती है .
तेरी हर बात मुझे बहका जाती है ,
सांस तोह बहुत देर लेती है आने में …
हर सास से पहले तेरी याद आ जाती है …

चले आये हम यादें छोड़ कर
आपके दिल में अपनी धड़कन छोड़ कर
कभी न रोयेंगे ,
कभी न मुस्कुराएंगे
चले आये हम चाहत की वोह घर छोड़ कर ..........

कांच को चाहत थी पत्थर पाने की ,
एक पल में फिर टूटकर बिखर जाने की ,
चाहत बस इतनी थी उस दीवाने की ,
अपने टुकडो में तस्वीर उसकी साजन की ,

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