मैं एक सफर मैं था !
मेरे उस सफर मैं
एक परिवार जो अपने दो
बच्चो और माँ के साथ कही जा रहा था !!
वो जो छोटा बच्चा था अपनी माँ के
साथ खेलने मैं मगन था !
खेल वो जो हर किसी के बचपन से है
खेल वो मेरा भी बचपन याद दिला रहा था !!
और वो बूढी अम्मा जो खिरकी के पास बैठी थी
इन पलो के देख कर कही खो गई
सायद अपने बचपन मैं
मेरी नजरे भी उस नज़ारे को देख मगन हो रहा था !!
पर कुछ तो था जो मेरे ख्यालो मैं
खलल दाल रहा था !
वो बड़ा लड़का जो दादी के पास
बैठा था ' नजाने उसे क्या शैतानी सूझी वो दादी के साथ मस्ती करने लगा !!
मैंने देखा वो झुरियों से लदे चेहरे
पर एक मुस्कान का लकीर आया
पर तुंरत मैंने वो चेहरे से
मुस्कान को वापस जाता पाया !!
मैंने देखा बहु बेटे की नजर
गुस्से से उसके अपने बेटे पर पाया
लड़का माँ बाप के नजर को देख
सहम कर चुपचाप बैठ गया !!
"और वो कांपती बदन' उस
बूढी आँखों मैं दो बूंद आंसू का था "
वो ऑंखें सीकुर गई थी सायद
अतीत के यादो मे
बदन और और कांप रहा था
ऑंखें और सीकुर रही थी
पता नही उन यादों मैं क्या था !!
अतीत का वो याद जो
किसी के बचपन को सहारा दिया था
वो जो उसके जवानी को
संवारा था !!!
"या कुछ ऐसा जो
अभी के पलो को जवानी मैं गुजारा था"
कुछ तो था उन यादो मैं
जो मेरे ख्यालो मैं खलल दाल रहा था !!!
लेखक: शंकर शाह
मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Thursday, October 15, 2009
Wednesday, October 7, 2009
दुसरे के तराजू में ख़ुद को तौलता रहा / DUSRE KE TARAJU MAIN KHUD KO TOULTA RAHA
कोई तो होता
जिसके कंधो पर रख सर सोता !
मिल जाता दो पल सुकून का
यूँ कोई सहारा तो होता !!
गम है लिए सिने मैं फिरता
आँख नही पर दिल है रोता !
गम गम हिन् गम है है यहाँ
काश कोई पल खुशी का तो होता !!
है कहने को तो हमसफ़र भी मेरा
जहा हम हिन् हम है सफर तनहा रहा !
उलझा हूँ ख़ुद के उलझनों में
और दोस्तों ने पागल कहा !!
दोस्तों ने भी जख्म दिए
उम्मीद में मरहम के चलता रहा !
दुसरो के तराजू में
ख़ुद को तौलता रहा !!
लेखक
शंकर शाह
जिसके कंधो पर रख सर सोता !
मिल जाता दो पल सुकून का
यूँ कोई सहारा तो होता !!
गम है लिए सिने मैं फिरता
आँख नही पर दिल है रोता !
गम गम हिन् गम है है यहाँ
काश कोई पल खुशी का तो होता !!
है कहने को तो हमसफ़र भी मेरा
जहा हम हिन् हम है सफर तनहा रहा !
उलझा हूँ ख़ुद के उलझनों में
और दोस्तों ने पागल कहा !!
दोस्तों ने भी जख्म दिए
उम्मीद में मरहम के चलता रहा !
दुसरो के तराजू में
ख़ुद को तौलता रहा !!
लेखक
शंकर शाह
Friday, September 11, 2009
दोस्ती कब जवां हुई / DOSTI KAB JAWA HUI
ऑंखें मिली पलके झुकी
दिल मैं खुमार हुआ!
दिल से दिल मिले
और मुझे प्यार हुआ !!
मन की निगाहों से देखा
हर जगह तेरा दीदार हुआ !
दोस्ती कब जवाँ हुई
न जाने कब मुझे प्यार हुआ !!
साँसों मैं तेरा धुन है
धड़कने है अब तेरे नाम
दिल मैं अब तेरी चाहत
अब तो मैं तेरा हुआ !!
खुशी मैं तेरे हंसा
गम मैं तेरे रोया
हसरते अब तुझपे जवाँ
यूँ मैं "तेरा" तेरा दीवाना हुआ !!
लेखक:- शंकर शाह
Thursday, July 2, 2009
Tuesday, April 28, 2009
हम आह भी तो हो गए बदनाम / HUN AAH KIYE BHI TO GAYE BADNAAM
Saturday, March 28, 2009
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