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MERI KAHANI

Saturday, April 13, 2013

Rahashyamayi Dunia / रहश्यमयी दुनिया

एक रहश्यमयी दुनिया है, जहाँ कुछ दिनों से हर रोज़ पहुच जाता हूँ, कोई है जो मिलता है अब हररोज़ मुझे, वो मेरे खामोश कविता की कल्पना नहीं है, कुछ है तो है उसमे, जो मै सिर्फ सुनता हूँ उसे जब वो बोलती है, अच्छा लग रहा है अब मेरे शब्द कागज़ पे सिर्फ उतरते नहीं बतियाते भी है और बिखरते है रंग बनके, जैसे इन्द्रधनुषी सतरंग जो अब ओझल होते नहीं मेरे आँखों से,

शंकर शाह 


Saturday, March 2, 2013

Nashaa / नशा

रात भर सर्द हवाओं में तुम्हे ओढ़े रहा। आंख कैमरा बन कैद करता रहा तुम्हे, चाँद बनकर तुम भी तो इठला रही थी। अंगुलियों ने नजाने कितने गीत लिख डाले आसमान को लैटरपैड बना। सारी रात तुम गुनगुनाती रही और महकती रही सांसो में। एक नशा सा है तुम्हे देखना हथेलियों बिच और गले लगा लेना तुम्हारे ख्यालों को। सुबह पक्षिओ के गीत और पत्तियों पे चमकते ओश की बुँदे गवाह है मेरे हसीं रात का।  सुबह अभी भी नशे में है और में भी, फिर रात की इंतज़ार में।

शंकर शाह   

Thursday, February 21, 2013

तुमने जो देखा तो लगा जैसे दिल फिर से जीने लगा, धधकने भी जीती है जिंदगी होती है एहसास तेरे हर आहट पर, मुस्कुरा दो फिर से अब रातो मे करवटे बदलने का मजा हिन् कुछ और है!!!!!!

शंकर शाह

Monday, January 28, 2013

Jaroorate / जरूरते

मै एक थका हारा हुआ एक काया हूँ। सिपिओन की तरह दसको से अपने अन्दर  मोती खोज रहा हूँ। एक सफ़र है अंतहीन सफ़र, कभी लगता है मेरा मंजिल मिल गया और कभी सफ़र दिशाहीन। थका हुआ शरीर चल रहा है। पहियों के अविष्कार पे बस इतना ख्याल आता सायद इसे बर्तन बनाने के लिए बनाया गया होगा पर जरूरते गाड़ी बन गई।

शंकर शाह

Tuesday, January 1, 2013

Naya Panna / नया पन्ना

नया साल नया कैलेंडर और नयी तारीखें। प्रकिती और प्राकृतिक संरचना, बदलाव के पहिओं पे टहलता हुआ बहुत आगे निकल आया है एक बेहतर और बेहतर बदलाव के साथ। वहीँ हम चिपके हुए है एक झूठी बोझ के साथ संस्कारी बोड़े के साथ, ये प्रमाण है हमारे आदिम होने का। जहाँ बदलाव प्राकृतिक है वही हम बदलाव के बिच ग्लोबल वार्मिंग। एक उम्मीद कैलेंडर के बदलते पन्नो के साथ की हम संकीर्ण संस्कारी पन्नो को उलट के एक नया पन्ना जोड़े ताकि आने वाली सदियाँ गाली देने के बजाय वो पन्ने पलते और लिखदे नया कुछ।

शंकर शाह

Friday, December 14, 2012

Jindagi Aur Bhukh / जिंदगी और भूख

कुछ लोग जिन्दा है, दुसरो के हाथो से रोटीओं को छीन कर। कुछ लोग जिन्दा है अपनों के हिस्से को बेचकर और कुछ सच में जिन्दा है अपने हिस्से का बांटकर। जिन्दा रहने और जिंदगी के बिच झूलता इंसान कितना कुछ कर जाता है जो हमेशा जरूरत के इर्दगिर्द परिक्रमा करता या तो सूरज होता है या चाँद, पर जो भी हो जिंदगी और भूख के बिच जलता सिर्फ तो इंसानियत या उम्मीदे है।

शंकर शाह

Monday, November 12, 2012

Jindagi Jinda Rahe / जिंदगी जिन्दा रहे

कभी मिले हो एक ऐसे चेहरे से जो आइना हो खुद का। कभी मिलाये हो ऐसे नजर से जो देखता है तो तुम्हे पर कहीं उतर जाता है खुद में खूब गहराई तक। भगवान बस देना ताकत की अगर लैंपपोस्ट नहीं बन सका तो कोई बात नहीं पर जुगनू बन उम्मीद को जिन्दा रखु किसी झोपड़े का और जिन्दा मै भी रहूँ ताकि आत्मा और मेरे बिच, जिंदगी जिन्दा रहे।

(शंकर शाह) 

Thursday, November 8, 2012

Mere Hisse Ka / मेरे हिस्से का

याद है की तुम कभी थी सुबह के ओश बनके मेरे जिंदगी के पत्तियों पे। सूरज इन्द्रधनुष बन एहसास कराता था, की कुछ रंग है मेरे जीवन में भी। वक़्त है की करवटे बदलता रहा और रात है की निहारता है तुम्हे अब चाँद में। अब उतरो हकीकत बनके मेरे प्यार छत पे और मिलो तुम की मेरे हिस्से का करवाचौथ अभी बाकि है।

शंकर शाह

Friday, November 2, 2012

Khap / खाप

कोई उतरता है ख्वाब बनके रोज़ रात में...और कई कहते है, ख्वाब ख्वाब हिन् रहे तो अच्छा है...इच्छा है,कोई डाल दे जिन्दा इंसान मे जिंदगी और मेरे अधूरे बोल संगीत बन थिद्के किसी के होंठो पर...जिंदगी अब  मिल भी जाओ, वक़्त है की ठहरता हिन् नहीं है और "खाप" वाले है की प्रेम के चौपाल पे मंदिर बना रहे है.....

( शंकर शाह )

Saturday, October 20, 2012

Khai / खाई

कौन मिला, कहा मिला, हम तो वही खड़े है...जहाँ से सफ़र की सुरुआत थी...अजीब उलझन है....कदमो के निशान सड़क पे है हिन् नहीं पर लगता है की थक गया हूँ....वो कौन सा सफ़र था या सफ़र का फैसला जो बाकि है मंजिल के लिए....मै हूँ.... हाँ सिर्फ मै हिन् तो हूँ...दूर दूर तक सिर्फ दिख रहा है तो जमीन और आसमान के बिच की खाई....

शंकर शाह 

Thursday, October 11, 2012

दिल कह रहा है फिर मिलो आप....फिर नजरे देखें आपको और दिल इसबार आपसे से प्यार का इज़हार कर दे...!!!!
शंकर 

Tuesday, September 25, 2012

आज मिलो तुम फिर पहली मुलाकात की तरह..एक बार फिर नजरो का खेल खेलु और दिल घायल हो जाये...


शंकर शाह

Wednesday, September 5, 2012

Guru / गुरु

"वक़्त" कभी माँ की तरह गोद में खेलाते बचपन को तो कभी गुरु की तरह सिखाते दुनिया...दोस्त बनकर कभी उचल कूद करलेते हुए तो कभी पापा बनकर कहते हुए लड़ो जीना है तो...कहते है न "गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागु पायें..बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो बताय"... ए वक़्त गुरु, मै एकलव्य और अर्जुन तो नहीं पर आप द्रोणाचार्य हो मेरे लिए...और आज के दिन आप को सत: सत: नमन: :)

(शंकर शाह)

Thursday, August 16, 2012

Pagal / पागल

कुछ खास तो नहीं जो मै बोलता हूँ...कुछ खास भी तो नहीं जो मै सोचता हूँ...ऐसा कुछ भी तो खास नहीं है जो आपको यातना देता हो...फिर मुझे "पागल",  ये उपनाम क्यों?

शंकर शाह

Thursday, July 19, 2012

Jhhutha Nind / झूठा नींद

कुछ आत्माओ के आवाज़ बढ़ रहे है मेरे आत्मा में सोये इंसान को जगाने के लिए...वो पविव्त्र आवाज़ है ऐसा नहीं कहता.. पर कुछ तो है, उस आवाज़ का स्पर्श झंझोर्ता है मेरे अन्दर के इन्सान को...एक गहरी नींद है जो सपनो में मुझे इंसान बनाये हुए है.. और मै जानता भी हूँ की मै नींद में हूँ...मै सोया हुआ हूँ, एक आलस है जो कहती है की तू कर्मवीर है..पर वो आवाज़ जो झ्न्झोर रही है जगाने के लिए ?...सपने और सच का द्वंध है.. उम्मीद है मै जग जाऊंगा इस से पहले की झूठा नींद हमेशा के लिए न सुला दे मुझे....
(शंकर शाह)