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MERI KAHANI

Friday, December 14, 2012

Jindagi Aur Bhukh / जिंदगी और भूख

कुछ लोग जिन्दा है, दुसरो के हाथो से रोटीओं को छीन कर। कुछ लोग जिन्दा है अपनों के हिस्से को बेचकर और कुछ सच में जिन्दा है अपने हिस्से का बांटकर। जिन्दा रहने और जिंदगी के बिच झूलता इंसान कितना कुछ कर जाता है जो हमेशा जरूरत के इर्दगिर्द परिक्रमा करता या तो सूरज होता है या चाँद, पर जो भी हो जिंदगी और भूख के बिच जलता सिर्फ तो इंसानियत या उम्मीदे है।

शंकर शाह

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