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MERI KAHANI
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Saturday, July 24, 2010

Mai Aakar Le Rahi Hoon maa / मै आकार ले रही हूँ माँ


मै आकार ले रही हूँ माँ
तेरे सपने रूप साकार ले रही हूँ माँ

टूटे तारों से मांगी दुवा की

एक आकार हूँ

तेरे सपनो के सच्चाई

की रूप साकार हूँ

ख्याली खेत पर लगाई फसल

उभार ले रही हूँ माँ

मै आकार ले रही हूँ माँ


तेरे अन्खेले किती किती

की गोटी हूँ

तेरे खामोश अल्हर्पण

की मोती हूँ

तेरे अकेले पण की पुकार

अवतार ले रही हूँ माँ

मै आकार ले रही हूँ माँ


काली अमावस सी डर में

देवदूत की आहट हूँ

तेरे बैचेन रात दिन की

मै राहत हूँ

तेरे प्राथना पुकार की अनुगूँज

तुझमे सुप्त पड़ी माँ दुर्गा
,
काली रूप धार ले

मूर्च कटार धार ले रही हूँ माँ

मै आकार ले रही हूँ माँ

(शंकर शाह)

Friday, July 23, 2010

Jo Hai Us Se / जो है उस से

जो है उस से खुश नहीं..उस से बेहतर पाने की ख्वाहिश...जो है जो पाना चाहते थे..जो पाना चाहते थे मिला पर बेहतर नहीं.. जो है उसी में से है पर धोखा इस बार शायद कुछ अलग हो...पाने की ख्वाहिश बहुत कुछ करने को प्रेरित करता है...और प्रेरित आत्मा समझौते के लिए..और समझौते के नीव से बनी रिश्ते को जब नाम मिल जाये तो उसका कोई मौल नहीं..फिर से एक नए नीव की तैयारी..अनजान सुनसान रास्ता आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ..बेहतर बनाना और बेहतर पाने में बहुत अंतर है...जहा पाना बढ़ने को प्रेरित करता है वही बनाना जो है उसी को बेहतर....फैसला आपका......

(शंकर शाह)

Wednesday, July 21, 2010

Jindagi Se Sirf / जिंदगी से सिर्फ

कई पल ऐसे आय जिंदगी में जब सवाल नहीं था...विश्वाश था ऊपर वाले के ऊपर..एक बृक्ष से लोभ रूपी प्यार जैसा ...घासों को रौंदा बहुत पैरो तले और रौंद्वाया भी..गिरा खड़ा हुआ तो गाली देते हुए..कुछ लम्हों को हटा दे तो जिंदगी से सिर्फ शिकायते होती है..मेरे विश्वास में खोट हो या उपरवाला हीं न हो इससे कोई मतलब नहीं..तकलीफ होता है जब वो कुछ पल ...दिमाग रूपी जाल से निकल कर आत्मा रूपी चलनी में चल कर मुझे मेरा चेहरा दिखाता है



(शंकर शाह)

Tuesday, July 20, 2010

Aina Bhi To / आइना भी तो

अपने हथेली को गौर से देखा तो ऐसा लगा कुछ मेरे हाथो से छुट चूका है...कुछ ऐसा है जो में भूल रहा हूँ...यादो के समंदर में गोता लगाकर ढूंढने लगा वो मोती..मिला भी तो एक मजदूर के रूपमें मेरा जीवन चक्र..भागमभाग भरी जिंदगी में भागता रहा कब जीवन चक्र बुढ़ापे के देहलीज पर पहुँच गया पता हीं न चला..बच्चो के चेहरे को देखकर आइना भी तो झूठ बोलता रहा..


(शंकर शाह)

Thursday, July 15, 2010

Sawal mere Hone Ka / सवाल मेरे होने का

मै जितना सवालो के घेरे से निकलना चाहता हूँ..उतना हीं उसमे घिरता जाता हूँ...जबाब तो धुन्धता हूँ पर जबाब फिर से सवाल कर बैठता है...जबाब से सवाल और सवाल का जबाब.. इनका सिलसिला चलता रहता है..अगर चाहे तो सवाल से भाग तो सकते है क्योकि इसका दायरा अनंत है निराकार है..पर कब तक, मौत भी तो एक जबाब है जिंदगी का और जिंदगी भी तो एक सवाल है मेरे होने का....



(शंकर शाह)

Monday, June 28, 2010

Dil Pucche Chhe Maroo Arey Dost Too Kya Jay Che / દિલ પૂછે છે મારું અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે ?


દિલ પૂછે છે મારું
અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે
?
જરાક નજર તો નાખ
,
સામે સમસાન દેખાય છે

ના વ્યવહાર સચવાય છે

ના તહેવાર સચવાય છે

દિવાળી હોય કે હોળી

ઓફીસ માં ઉજવાય છે

આ બધું તો ઠીક હતું

પણ હદ તો ત્યાં થાય છે

લગ્ન ની કન્કોક્ત્રી મળે ત્યાં

શ્રીમંત માં માંડ જવાય છે

દિલ પૂછે છે મારું

અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે
?
ફોન બૂક ભરેલા છે મિત્રો થી

કોઈક ના ઘેર ક્યાં જવાય છે

હવે તો હદ થઇ ઘર ના પ્રસંગો

પણ હાફ ડે માં ઉજવાય છે

દિલ પૂછે છે મારું

અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે
?
કોઈક ને ખબર નથી આ

રસ્તો ક્યાં જાય છે

થાકેલા છે બધ્ધા છત્તા

ચાલતા જ જાય છે
,
દિલ પૂછે છે મારું

અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે
?
કોઈક ને સામે રૂપિયા તો

કોઈક ને ડાલર દેખાય છે

તમેજ કહો મિત્રો સુ આનેજ

જીંદગી કેહવાય છે
,
દિલ પૂછે છે મારું

અરે દોસ્ત તૂ ક્યાં જાય છે
?


(મયુર સેઠ)

Thursday, April 22, 2010

Khud ke Banaye Raho main / खुद बनाये राहो मैं

खुद बनाये राहो मैं खुद को चलाता रहा... 

अपने वजूद को अपने हाथो से मिटाता रहा...

दर लगता था खुद से इसीलिए अपने जज्बातों को जलाता रहा...

यूँ तो बना चूका हूँ एक दिवार की सच दस्तक न दे जाये... 

पर क्या करता जब सच आइना बन कर सामने आता रहा, डराता रहा...