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MERI KAHANI

Wednesday, July 21, 2010

Jindagi Se Sirf / जिंदगी से सिर्फ

कई पल ऐसे आय जिंदगी में जब सवाल नहीं था...विश्वाश था ऊपर वाले के ऊपर..एक बृक्ष से लोभ रूपी प्यार जैसा ...घासों को रौंदा बहुत पैरो तले और रौंद्वाया भी..गिरा खड़ा हुआ तो गाली देते हुए..कुछ लम्हों को हटा दे तो जिंदगी से सिर्फ शिकायते होती है..मेरे विश्वास में खोट हो या उपरवाला हीं न हो इससे कोई मतलब नहीं..तकलीफ होता है जब वो कुछ पल ...दिमाग रूपी जाल से निकल कर आत्मा रूपी चलनी में चल कर मुझे मेरा चेहरा दिखाता है



(शंकर शाह)

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