अच्छाई पे बुराई की जीत या बुराई पे अच्छाई की जीत...जीत के लिए जरूरी है समर्पण की...किसी के लिए रावन कोई भी मायने रखता हो...पर मेरे लिए रावन का जरूरत है अपने अन्दर राम को पहचानने के लिए....आप सभी को विजयादशमी की सुभकामनाये.....:)
मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Monday, October 18, 2010
Wednesday, October 13, 2010
Ghar Badalbe Se Pahle / घर बदलने से पहले
अनुभूति से ओझल हो रहे प्यार के एहसास के बिच..अँधेरा होने से पहले...दिल के कोने में आकर्षण का दीपक जल जाता ..और एक बार फिर घर बदलने से पहले डाकिया चिट्ठी डाल गया....
(शंकर शाह)
Tuesday, October 12, 2010
DAM / दम
पलकों के बरसात से मिट रहा है इंसानियत ..नए सवेरे की चाह हर रात माँ का आंचल बन लोरी सुनाता... हकीकत का सड़क सुनसान ...चल रहा है भीर का हिस्सा बन.. आज के गोद मै भूख भुत बनकर दौड़ा रहा है...नहीं जीने के बहुत बहाने है और जीने के लिए एक हौसला काफी...न जाने उसके हौसले में अभी कितना दम है बाकि...
(शंकर शाह)
Saturday, October 9, 2010
Madhusala / मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला,
लगाले अधरों से भूल जाएगी गम,
भूल जाएगी सब हाला,
रोना नहीं मेरी अंगूरी,
चाहे रोज तोडू तेरा हड्डी या ताला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
माँ को देख ले, कल तक वो
कमाती रही मेरे लिए...
आज तुने है कमान संभाला,
आजा चखले ये स्वर्ग सी प्याला
भूल जाएगी हर गम,
क्योकि हर गम का है
यह हाला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मत देख पीछे, अपने बच्चो को माँ को,
मैंने खा लिया है, अब भूख नहीं है बाला
अब तो चाहता हूँ दो घूंट उतार लू हलक में
ताकि निशि रात भी न लगे मुझे काला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
ह्म्म्म क्या सोचती, मत सोच
अपने ननद के लिए, भगवान ने
उसका भी किस्मत लिख डाला,
उसे भी ले जायेगा कोई पीनेवाला
चल पी न,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
क्यों कोश्ती है अपने किस्मत को
तू खुशनसीब है, मै जिसे मिला
वो है किस्मत वाला,
देख नेता कहते मुझे, तू मेरे कुर्सी का रखवाला
देख मेरे वजह से चल रही, टूनडू का मधुशाला
नेताओ की जी हुजूरी दंगा फसाद,
माओबाद का में हीं तो हूँ जाला,
मुझे मिल जाये अंगूरी रस
फिर नहीं चाहिए स्वर्ग रूपी मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मुझसे हीं घर बिखरे, कई घड़ो मैंने तोड़ डाला
मुझे भी दुख होता है जब तोड़ता मंदिर मस्जिद
पर इसी से तो मिलती है तुझसी मधुबाला
सब साफ़, जब बैठता ऊपर मधुशाला
हाँ येही से सुरुआत येही ख़तम
येही तो है मेरा मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
(शंकर शाह)
लगाले अधरों से भूल जाएगी गम,
भूल जाएगी सब हाला,
रोना नहीं मेरी अंगूरी,
चाहे रोज तोडू तेरा हड्डी या ताला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
माँ को देख ले, कल तक वो
कमाती रही मेरे लिए...
आज तुने है कमान संभाला,
आजा चखले ये स्वर्ग सी प्याला
भूल जाएगी हर गम,
क्योकि हर गम का है
यह हाला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मत देख पीछे, अपने बच्चो को माँ को,
मैंने खा लिया है, अब भूख नहीं है बाला
अब तो चाहता हूँ दो घूंट उतार लू हलक में
ताकि निशि रात भी न लगे मुझे काला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
ह्म्म्म क्या सोचती, मत सोच
अपने ननद के लिए, भगवान ने
उसका भी किस्मत लिख डाला,
उसे भी ले जायेगा कोई पीनेवाला
चल पी न,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
क्यों कोश्ती है अपने किस्मत को
तू खुशनसीब है, मै जिसे मिला
वो है किस्मत वाला,
देख नेता कहते मुझे, तू मेरे कुर्सी का रखवाला
देख मेरे वजह से चल रही, टूनडू का मधुशाला
नेताओ की जी हुजूरी दंगा फसाद,
माओबाद का में हीं तो हूँ जाला,
मुझे मिल जाये अंगूरी रस
फिर नहीं चाहिए स्वर्ग रूपी मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मुझसे हीं घर बिखरे, कई घड़ो मैंने तोड़ डाला
मुझे भी दुख होता है जब तोड़ता मंदिर मस्जिद
पर इसी से तो मिलती है तुझसी मधुबाला
सब साफ़, जब बैठता ऊपर मधुशाला
हाँ येही से सुरुआत येही ख़तम
येही तो है मेरा मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
(शंकर शाह)
Friday, October 8, 2010
Hum Bachhe Hai / हम बच्चे है
वक़्त के थपेड़ो का भी जबाब नहीं...जब हम जमीन से आसमान हो रहे होते है..तो कभी सीढ़ी बन जाता है तो कभी पापा का अंगुली तो कभी माँ के आंचल का एहसास और कभी दोस्त के थपेड़ो सा...बेटा ज्यादा मत उड़ वरना लात मारूंगा... सोच के बुगुर्गता के मोड़ पे भी हमे एहसास करा जाता है की हम बच्चे है......
(शंकर शाह)
Monday, October 4, 2010
Door Rakhna / दूर रखना
तैयार होते घर की नींव कमजोर थी..मैंने कहा हमारे घर के बुनियाद का नींव हीं कमजोर है...पर मेरी चीख उनके आंख के चमक के आगे फींकी पर गई...मेरा दिल कशोसटा रहा मुझे पर मै कुछ नहीं कर पाया...कई सदस्य थे जो मेरे विचार से इत्तेफाक रखते थे...पर घर के चमक के आगे वोह भी अंधे हो गए...और मै आज भी प्राथना करता रहता हूँ " हे भगवान आपदावो को हमारे शहर से दूर रखना "
(शंकर शाह)
Saturday, October 2, 2010
Friday, October 1, 2010
Tumhare Safar ka Manchitra / तुम्हारे सफ़र का मानचित्र
जब देखता हूँ रात की कालिमा को...एक नए सवेरे का विश्वास होता है...और दिन के भागमभाग के बाद जरूरी हो जाता कुछ पल अँधेरे का...मेरे जीने के लिए.. मुझे बहुत जरूरी है कल से आज को बांधे रखना..कल के नींव से हीं तो मेरे आज का घर है...सुक्रिया मेरे कल पे मुस्कुराने वालो...धरती के चादर ओढ़े हुए जिस पत्थर को तुमने लहरों में बहाया था वो तुम्हारे हाथ से फिसल चूका तुम्हारे सफ़र का मानचित्र था...
(शंकर शाह)
Thursday, September 30, 2010
Atut Satya / अटूट सत्य
बहुत कुछ मौत जैसा अटूट सत्य है लेकिन मै नकारता हूँ ...इसीलिए नहीं की मै कुछ हूँ...इसीलिए मेरे सच से किसी के भावनाओ के घर मै आग न लग जाये...पर सोचता हूँ ये कैसी भावना...जो सच को झूठ और झूठ को सच मानता हो..हाय रे दुर्भाग्य इतिहास के अव्सेशो को जो चीख चीख के कह रहा है में हूँ...मै देख रहा हूँ फिर भी नकार रहा हूँ...क्या करू ये मेरे ये संस्कार है किसी सजीव को चोट न पहुंचावो..
(शंकर शाह)
Tuesday, September 28, 2010
Vichar ka Vyagyanik / विचार का वैज्ञानिक
बहुत सोचा धरती गोल क्यों है...फिर विज्ञानं कहता है की ये घुमती है...पर ऑफिस से घर और घर से ऑफिस की दुरी तो उतनी ही है...रिश्ते, नाते, दोस्त, परिवार सब एक हिन् जगह पर हैं अगर धरती घुमती तो ये भी घूमता और छुटते इन सब से फिर गले मिलता पर मेरे विचार का वैज्ञानिक सोच के प्रयोग पर कही सठिक नहीं बैठ रहा.....
(शंकर शाह)
Monday, September 27, 2010
Kya Apne Dekha Hai / क्या आपने देखा है
दोस्ती कितना प्यारा शब्द न...दुनिया कई रिस्तो का एक संकलित शब्द जो खुद रिस्तो में नहीं बंधा है पर कई रिस्तो को अपने साथ बांधे होता है...कितना खुशनसीब होते है जिसके सच्चे दोस्त होते होंगे...मैंने किताबो, फिल्मो में, बहुत सारे लोगो के लब्जो में बहुत जिक्र सुना है पर देखा नहीं क्या आपने देखा है ?
(शंकर शाह)
Azadi ki Chingari
जिन्होंने आज़ादी की चिंगारी, आग बनाई खुद को भस्मीभूत करके, खुद की आहुति देके, वो एक पर खुद में लाख थे, जैसे लकडिया तो सब जलती है...पर किसी में तपन ज्यादा होता है किसी में कम, कोई जल्दी जल्दी जलता है कोई वक़्त लेता, हम उन से प्रेरणा ले सकते है...उन से कुछ बेहतर करने का या कमसे कम उनके राहों में खुद को एक राहि बनाके...
भगत सिंह के जयंती पर उनको सत सत नमन...
भगत सिंह के जयंती पर उनको सत सत नमन...
Friday, September 24, 2010
Ankho ki Bhasha / आँखों की भाषा
गर्मी से झुलसते शरीर से जब स्पर्श करता शीतल हवा..अपने प्यार को चाँद में तलाशना और बंद लबो से संगीत बनाना...कुछ स्पर्श कई तालो को खोल जाते है बंद परे यादो के गृह में अनमोल पलो के संदूक को ..उन लम्हों कैद कुछ फूल होते है तो कुछ शूल..पर जरूरत है कभी कभी बंद परे घर के ताले को खोलना... अपने गाँव से शहर तक का सफ़र के बिच की पुलिया को देखना...बहुत कुछ होते है जो बयाँ करना चाहता हूँ पर आँखों की भाषा पढता कोई नहीं....
(शंकर शाह)
Thursday, September 23, 2010
Pyaar Ka Samarpit Drishya / प्यार का समर्पित दृश्य
व्याकुल मन थक के जब शांति ढूंढता था .आकर्षित करने लगता था गाँव के मुहाने पर का तालाब..अच्छा लगता था देखना ढलते सूर्य की लालिमा जल के दर्पण में...मछलियो का निर्भय विचरण जो लोक जीवन में दुर्लभ हो गया है..प्यार का समर्पित दृश्य हंसो के जोड़े मे ..बहुत अच्छा लगता था ढलते सूरज को अपने मुट्ठी मे कैद करना... काश भागमभाग के जिंदगी मे दम तोड़ते यादो को अपने बच्चो के बचपन से जोड़ पाता
(शंकर शाह)
Wednesday, September 22, 2010
Galti / गलती
कुछ होता है जो होता सच में होता है ...पर सच में विश्वास नहीं होता ..और कभी विश्वास होता है पर उसे विश्वास नहीं करना चाहते ...गलती उसकी नहीं है जो विश्वास नहीं करता है या करता है ...गलती तो कम्भख्त जरूरतों की है जो सभकुछ करवाता है...
(शंकर शाह)
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