मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Thursday, February 20, 2025
एक वादा था
कुछ लम्हों को चुन के मैंने बुना था तुम्हें……..
जैसे, किसी चित्रकार ने एक केनवास पे अपने प्यार को उतारा हो।
इंद्रधनुषि तुम हो तो मेरा प्यार भी संगीत है …
कई ज़िंदगी जिया है एक तुम्हें पाके….
जैसे एक वादा था और हक़ीक़त तुम हो …
शंकर शाह
कई पर्तों में मैंने लिखा है प्रेम
कई लम्हों को सींचा तब स्याही बनी
अनगिनत यादों को तब पन्ने
वक़्त को रोककर जब यादों
और लम्हों को मिलाया
तब कई पर्तों मैं उतरा मेरा प्रेम
और ऐसे हीन मैं कई पर्तों मैं,
मैंने लिखा मेरा प्रेम!
शंकर शाह
एक प्रेम संगीत
रात का ख़ामोश प्रहर
जब दुधिया रोशनी मैं
घोलता है यादों का चाशनी
ना जाने क्यों, सिर्फ़ तुम होती हो
मानो जैसे संगीत, तुम्हारा संग और
साँसों मैं ख़ुशबू गुनगुना रही हो
एक प्रेम संगीत !
शंकर शाह
एक साल फिर गुज़र गया!
एक साल फिर गुज़र गया
जैसे मुट्ठी बंद हाथो से रेत
पिछले साल की तरह
इस साल भी सपने मलिन रहे
और ख़्वाब अधूरे
जाने क्यो जैसे जैसे जिंदगी के साल कम हो रहे है
वैसे वैसे छटपटाहट बढ़ती जा रही है
लौटने को फिर से एक बार बचपन मैं.
मैं और मेरी ख्वाहिशे, किसी दिन ऐसे हीन खुदकुशी कर लेंगे
और दुनिया कहेगी देखो वो बड़े लोग !
शंकर शाह
Tuesday, September 20, 2016
Do Ankhen
कहीं एक खिड़की है जो खुली रहती है मेरे इन्तज़ार में... उसी के इन्तज़ार ने मुझे यायावर और मेरे सफ़र को रंगीन बना दिया है ... कभी मिले तुम्हें दो आँखें उस खिड़की पे राह तकते मेरा ...तो कह देना ...ये कुछ हसीन कैन्वस है तुम्हारे इन्तज़ार और उसके सफ़र के बीच का !
शंकर शाह
शंकर शाह
Sunday, February 7, 2016
Diwali / दिवाली
मेरी नजरे तंगी है तुम्हारे खिड़की पे और सांसो का आना जाना तुम्हारे दरवाजे होकर गुजर रही है.
मिलाओ नजर तो फिर इश्क़ कर लूँ की अभी अभी दिल के कोने में एक दिवाली की रात हुई है....
शंकर शाह
Wednesday, May 28, 2014
एक रात बैठूँगा सर्द परे रिश्तो के बिच...और तापुन्गा उसे पुराणी ख्यालो से... जलते दिलो के बिच से उठाऊंगा कुछ पलों को अंगीठी बनाके और रख दूंगा....एक बार फिर.....एक रात....सर्द पड़े हमारे रिश्ते को सेंकने के लिए.....
शंकर शाह
Monday, February 24, 2014
Aatmgyan / आत्मज्ञान
मै हूँ कई रहस्यो के कई परतो में लिपटा हुआ।
कभी खुलेगा क्या ये परत, या कोई घाव बन रिसेगा और कर देगा बीमार। या खुद हिन् पर्यास करूँगा और खोलूँगा खुद पे चडे परतो को और पा लूँगा आत्मज्ञान या कोई आयेगा और उघेरेगा करेगा सल्य चिकीत्सा और उघेरेगा एक एक परतो को।
है उम्मीद की एक दिन खुद के खोज मे, रहस्य नहीं "मै हूँगा"।
Monday, February 17, 2014
Atma Katha
सोचता हूँ कभी लिख दू आत्म कथा फिर झूठ फरेब से उतरता है कुछ शब्द पन्नो पे। फिर कहीं खालीपन सा झूठा सा लगता है सब। सुना है कहीं, आइना सब जानता है पर मेरे और आइने के बिच कहीं तुम बैठी हो। एक सच की मै झूठा हूँ, एक कडवी सच्चाई की तुम एक टूटी पुलिया हो मेरे और झूठ के दुरिओन के बिच।
शंकर शाह
Saturday, December 21, 2013
Jugnoo / जुगनू
सुना है टेलीपेथी से कि तुम्हारी मन कि नजरे भी टकटकी लगाये रहती है दरवाजे पे..... कमाल है, मेरे मन कि नजरे भी जुगनू बन के उडते रहते है तुम्हारे करीब … अब निकलो भी घर से बिना आहट के कि प्यार के नजर में ज्वार भाटा है.…
शंकर शाह
Saturday, December 7, 2013
Matlabi Rishte / मतलबी रिस्ते
मै फिर आउंगा, गिरे पत्ते और ओश कि बूंदो कि तरह, कभी किसी के चूल्हे में
जलकर आ जाउंगा काम, कभी मिल जाउंगा जमीन में और खाद के साथ मिलकर फ़ोटो
सिंथेसिस प्रक्रिया में खुद को पाउँगा । `मै आउंगा, रहूँगा विकल्प बनके
मतलबी रिस्तो के बिच और उसको और सींचूंगा अपने होने से ताकि तुम्हारा मतलब
जिन्दा रहे और उसके बिच मै ।
शंकर शाह
Monday, November 18, 2013
मुझे किसी दायरे में ना बांध ये मेरे दोस्त। मै भी मिज़ाजे मौसम हूँ क्या पता कब बदल जाऊं।
शंकर शाह
Friday, November 8, 2013
कमाल कि आविष्कार हो कुदरत का ....मुस्कुराती तुम हो और दिन हमारा निखर जाता है !!!!↚
शंकर शाह
शंकर शाह
Monday, October 21, 2013
Chhodo Na Wo Kal Ki Batein / छोड़ो न वो तो कल की बातें थी
कभी
पुराने खतों को खोल कर मुस्कुराई तो होगी ... शब्द नहीं मिले होंगे उन खतों
में ....ना जाने क्या था, खुद उतर जाते थे पन्नो पर उछलते कूदते बुद्धे की तरह
... खोलके देखो पुराने खतों को जब रोने का दिल करे किसी कारन, सच मानो
तुम्हारे आँशु मुस्कराहट बन थिरक जायेंगे तुम्हारे होंठो पर ...छोड़ो न वो
तो कल की बातें थी !!!! पर सच है की हंसने का वजह भी वही कल है…
शंकर शाह
Wednesday, August 7, 2013
Harddisk / हार्डडिस्क
मै डरता हूँ, इंसान के खाल में, मेरा मौजूदगी क्या है, एक सवाल है ....
मुझे सिकायत नहीं लोगो से या भीड़ से ..... मेले का क्या, चींटियो के भी तो
मेले है लगते है .... पता नहीं लोगो की ऑंखें सावन भादो किसी के प्यार में
हीं क्यों होती है ... मेरे हिस्से में, ज्वार-भाटा भावनाओ का सही नहीं
....कितना अच्छा होता न अगर मेरा दिमाग RAM होता जीवनचक्र का हार्डडिस्क
नहीं ...
#शंकर शाह
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