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MERI KAHANI
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Wednesday, October 13, 2010

Ghar Badalbe Se Pahle / घर बदलने से पहले

अनुभूति से ओझल हो रहे प्यार के एहसास के बिच..अँधेरा होने से पहले...दिल के कोने में आकर्षण का दीपक जल जाता ..और एक बार फिर घर बदलने से पहले डाकिया चिट्ठी डाल गया....

(शंकर शाह)

Tuesday, October 12, 2010

DAM / दम

पलकों के बरसात से मिट रहा है इंसानियत ..नए सवेरे की चाह हर रात माँ का आंचल बन लोरी सुनाता... हकीकत का सड़क सुनसान  ...चल रहा है भीर का हिस्सा बन.. आज के गोद मै भूख भुत बनकर दौड़ा रहा है...नहीं जीने के बहुत बहाने है और जीने के लिए एक हौसला काफी...न जाने उसके हौसले में अभी कितना दम है बाकि...

(शंकर शाह)

Friday, October 8, 2010

Hum Bachhe Hai / हम बच्चे है

वक़्त के थपेड़ो का भी जबाब नहीं...जब हम जमीन से आसमान हो रहे होते है..तो कभी सीढ़ी बन जाता है तो कभी पापा का अंगुली तो कभी माँ के आंचल का एहसास और कभी दोस्त के थपेड़ो सा...बेटा ज्यादा मत उड़ वरना लात मारूंगा... सोच के बुगुर्गता के मोड़ पे भी हमे एहसास करा जाता है की हम बच्चे है...... 

(शंकर शाह)

Monday, October 4, 2010

Door Rakhna / दूर रखना

तैयार होते घर की नींव कमजोर थी..मैंने कहा हमारे घर के बुनियाद का नींव हीं कमजोर है...पर मेरी चीख उनके आंख के चमक के आगे फींकी पर गई...मेरा दिल कशोसटा रहा मुझे पर मै कुछ नहीं कर पाया...कई सदस्य थे जो मेरे विचार से इत्तेफाक रखते थे...पर घर के चमक के आगे वोह भी अंधे हो गए...और मै आज भी प्राथना करता रहता हूँ " हे भगवान आपदावो को हमारे शहर से दूर रखना "

(शंकर शाह)

Saturday, October 2, 2010

वो जिंदगी भर दुनिअदारी के अनुभवों के रेट को चुन चुन के मोती बनाते रहे और हम जेनेरेसन गेप कह के उनको ठुकराते रहे....


Friday, October 1, 2010

Tumhare Safar ka Manchitra / तुम्हारे सफ़र का मानचित्र

जब देखता हूँ रात की कालिमा को...एक नए सवेरे का विश्वास होता है...और दिन के भागमभाग के बाद जरूरी हो जाता कुछ पल अँधेरे का...मेरे जीने के लिए.. मुझे बहुत जरूरी है कल से आज को बांधे रखना..कल के नींव से हीं तो मेरे आज का घर है...सुक्रिया मेरे कल पे मुस्कुराने वालो...धरती के चादर ओढ़े हुए जिस पत्थर को तुमने लहरों में बहाया था वो तुम्हारे हाथ से फिसल चूका तुम्हारे सफ़र का मानचित्र था...  


(शंकर शाह)

Thursday, September 30, 2010

Atut Satya / अटूट सत्य

बहुत कुछ मौत जैसा अटूट सत्य है लेकिन मै नकारता हूँ ...इसीलिए नहीं की मै कुछ हूँ...इसीलिए मेरे सच से किसी के भावनाओ के घर मै आग न लग जाये...पर सोचता हूँ ये कैसी भावना...जो सच को झूठ और झूठ को सच मानता हो..हाय रे दुर्भाग्य इतिहास के अव्सेशो को जो चीख चीख के कह रहा है में हूँ...मै देख रहा हूँ फिर भी नकार रहा हूँ...क्या करू ये मेरे ये संस्कार है किसी सजीव को चोट न पहुंचावो..

(शंकर शाह)

Tuesday, September 28, 2010

Vichar ka Vyagyanik / विचार का वैज्ञानिक

बहुत सोचा धरती गोल क्यों है...फिर विज्ञानं कहता है की ये घुमती है...पर ऑफिस से घर और घर से ऑफिस की दुरी तो उतनी ही है...रिश्ते, नाते, दोस्त, परिवार सब एक हिन् जगह पर हैं अगर धरती घुमती तो ये भी घूमता और छुटते इन सब से फिर गले मिलता पर मेरे विचार का वैज्ञानिक सोच के प्रयोग पर कही सठिक नहीं बैठ रहा.....

(शंकर शाह)

Monday, September 27, 2010

Azadi ki Chingari

जिन्होंने आज़ादी की चिंगारी, आग बनाई खुद को भस्मीभूत करके, खुद की आहुति देके, वो एक पर खुद में लाख थे, जैसे लकडिया तो सब जलती है...पर किसी में तपन ज्यादा होता है किसी में कम, कोई जल्दी जल्दी जलता है कोई वक़्त लेता, हम उन से प्रेरणा ले सकते है...उन से कुछ बेहतर करने का या कमसे कम उनके राहों में खुद को एक राहि बनाके...
भगत सिंह के जयंती पर उनको सत सत नमन...

Friday, September 24, 2010

Ankho ki Bhasha / आँखों की भाषा

गर्मी से झुलसते शरीर से जब स्पर्श करता शीतल हवा..अपने प्यार को चाँद में तलाशना और बंद लबो से संगीत बनाना...कुछ स्पर्श कई तालो को खोल जाते है बंद परे यादो के गृह में अनमोल पलो के संदूक को ..उन लम्हों कैद कुछ फूल होते है तो कुछ शूल..पर जरूरत है कभी कभी बंद परे घर के ताले को खोलना... अपने गाँव से शहर तक का सफ़र के बिच की पुलिया को देखना...बहुत कुछ होते है जो बयाँ करना चाहता हूँ पर आँखों की भाषा पढता कोई नहीं....


(शंकर शाह)

Thursday, September 23, 2010

Pyaar Ka Samarpit Drishya / प्यार का समर्पित दृश्य

व्याकुल मन थक के जब शांति ढूंढता था .आकर्षित करने लगता था गाँव के मुहाने पर का तालाब..अच्छा लगता था  देखना ढलते सूर्य की लालिमा जल के दर्पण में...मछलियो का निर्भय विचरण जो लोक जीवन में दुर्लभ हो गया है..प्यार का समर्पित दृश्य हंसो के जोड़े मे ..बहुत अच्छा लगता था ढलते सूरज को अपने मुट्ठी मे कैद करना... काश भागमभाग के जिंदगी मे दम तोड़ते यादो को अपने बच्चो के बचपन से जोड़ पाता 



(शंकर शाह)

Wednesday, September 22, 2010

Galti / गलती

कुछ होता है जो होता सच में होता है ...पर सच में विश्वास नहीं होता ..और कभी विश्वास होता है पर उसे विश्वास नहीं करना चाहते ...गलती उसकी नहीं है जो विश्वास नहीं करता है या करता है ...गलती तो कम्भख्त जरूरतों की है जो सभकुछ करवाता है...

(शंकर शाह)

Tuesday, September 21, 2010

Tere Shahar Se Door / तेरे शहर से दूर

जा दोस्त तुझे
कभी याद न आऊंगा
मै तेरे शहर से
दूर चला जाऊंगा

पहुत चोट खाए

अब दर्द को न बहलाऊंगा
मै तेरे शहर से
दूर चला जाऊंगा

सोचा क्या तुमने

"ऐसा मजबूरी भी क्या
हमने तुझमे जिया
तेरे जुदाई में मर जायेंगे
येही मेरी किस्मत है
तेरा गम तेरे आंशु
तेरी मजबूरी अपने साथ
ले जाऊंगा
मै तेरे शहर से
दूर चला जाऊंगा

दुआ है बस खुश रहना तू

गम तुझसे फसलो में रहे
मै तेरे हर गम को साथ
ले जाऊंगा
मै तेरे शहर से
बहुत दूर चला जाऊंगा


(शंकर शाह १०-०२ -२००३)

Monday, September 20, 2010

Kuchh Bite Pal / कुछ बीते पल

बीते वक़्त को खंगाल के देखा तो यादो के रूप में बहुत सारे मोती हाथ में आ गिरे...कुछ बीते लम्हों के मोतीयों ने याद दिलाये कितना प्यारा वक़्त था न जो बीत गया..और......कुछ बीते पल छुईमुई की तरह हो गयी है...उसे यादो के आगोश में उसे पकरना तो चाहता हूँ पर वो खुद को वक़्त के पत्तीओं सी छुपा लेती है...आज ऐसे हीं कुछ लम्हे को पकरना चाहा
 

(शंकर शाह)

Thursday, September 16, 2010

Buto Ke Mandir ka / बुतों के मंदिर का

किसी सफ़र मे चलने के लिए जरूरी हो जाता है होना किसी पदचिन्ह का...अनुशरण करना या तो जरूरी होता है, संस्कार या तो मजबूरी..पर हाल मे अनुशरण करना है..हाँ कुछ सरफिरे चाहते तो  है इंसानियत के सफ़र को आसान बनाना पर वो तो पागल होते है.. क्योकि वो चमत्कार नहीं चीत्कार करते है हमारे आत्मा के गहराइयों में..पर में खुद को पागल नहीं समझता..इसीलिए मै भी तो बुतों के मंदिर का एक उपासक हूँ..जहाँ भावनाओ को अहंकार के तलवार से हररोज़ बलि दिया जाता है...

(शंकर शाह)

Wednesday, September 15, 2010

Har Kramash Ke Bad / हर क्रमश: के बाद

अपने गाँव की मिट्टी की महक हीं कुछ और होती है..कई मिल फासलों के बावजूद मेरे नासिका में महकता रहता है ..मेरे लिए गाँव अब एक अजायब घर की तरह हो गया है...जब दुनियादारी के अविराम चलते सफ़र से थक गया तो पहुँच गया इतिहास के पन्नो में खुद को ढूंढने...हर क्रमश: के बाद जरूरी हो जाता है एक अल्पविराम लगाना अपने पिछले सफ़र को देखने के लिए......क्या पता...

(शंकर शाह)  

Tuesday, September 14, 2010

Unki Manzil Ka Akhiri sidhi / उनकी मंजिल का आखिरी सीढ़ी

कभी कभी मेरे मन के सुनसान घर में आहट होती है किसी के करीब होने की...सोच के दरवाजे पर कुण्डी लगी होती है फिर भी सांसो की खिर्कियाँ महसूस कराती है किसी के होने का एहसास..बार बार हर बार मै  ताला बदल देता हूँ..पर कमबख्त ये लालसा रूपी ताला हर बार चटक जाता है इस एहसास में की सायद उनकी मंजिल का आखिरी सीढ़ी हम हो....
 


(शंकर शाह)

Friday, September 10, 2010

WO YUN HUMSE / वो यूँ हमसे

दिल रोती रही लब मुस्कुराते रहे...
वो यूँ हमसे अपना गम छुपाते रहे
मैंने गमो को अल इस वेल कहा
और वो "यू वेल्काम" कह सिने लगते रहे

कैसे लगादु इलज़ाम उनके वफ़ा पे
वो मेरे खातिर इल्जामे "बेवफा" उठाते रहे
मेरे ख्वाहिशो को अब लुट जाने दो
वो मेरे खातिर अपने ख्वाबो को जलाते रहे


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Saturday, September 4, 2010

क्या खोया क्या पाया...कितना दिया और कितना मिला..कमाने और पाने के चक्कर में कमबख्त हम किये एहसान को बाजार और अपने भावनाओ को बनिया बना दिए है...

Tuesday, August 31, 2010

Kutch Khusboo Bikherte / कुछ खुशबू बिखेरते

रोज के भागमभाग के बिच मेरे मरते ख्वाहिशो से..अकेलेपण की खामोश चीख रात का चादर लिए दिल में एक दिलासा...रेत से पत्थर बनते फासले के बिच..रेगिस्तान में कुछ जीवन तो है ..थक चूका पैरो मे जीने ख्वाहिस.. चाँद को कागज़.. तारो के कलम से बनाता एक चेहरा..हवा घुटन भरी सांसो के बिच कुछ खुशबू बिखेरते हुए...ऐसे जैसे हर मौत के आहट पर एक बार फिर से जीने की तमन्ना..

 
 
(शंकर शाह)