मै एक थका हारा हुआ एक काया हूँ। सिपिओन की तरह दसको से अपने अन्दर मोती
खोज रहा हूँ। एक सफ़र है अंतहीन सफ़र, कभी लगता है मेरा मंजिल मिल गया और कभी
सफ़र दिशाहीन। थका हुआ शरीर चल रहा है। पहियों के अविष्कार पे बस इतना
ख्याल आता सायद इसे बर्तन बनाने के लिए बनाया गया होगा पर जरूरते गाड़ी बन
गई।
शंकर शाह
No comments:
Post a Comment
THANKS FOR YOUR VALUABLE COMENT !!