मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
कुछ खास तो नहीं जो मै बोलता हूँ...कुछ खास भी तो नहीं जो मै सोचता
हूँ...ऐसा कुछ भी तो खास नहीं है जो आपको यातना देता हो...फिर मुझे
"पागल", ये उपनाम क्यों?
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