एक लाश तंगी थी
चौराहे के नीम से
रस्सी उसे समेत ,
रही थी खुद में
जैसे कृष्ण सुदामा
का मिलन हो रहा था,
न जाने क्यों
कृष्ण इतना इतना
दीवाना हो रहा था
न जाने क्यों
सत: आंखे अश्रुविहीन थे
और कुछ आंखे
क्यों हुआ सोच रहा था
हाँ ! सवाल तो था
इस बार पानी अच्छी हुई थी
सुखा का मार न पड़ा था
कर्जे के बिज से, इस बार
फसल अच्छा हुआ था,
कोई बीमारी भी तो न थी उसे
और सरकार के आँकरो से
वो गरीब भी तो न था,
क्योंकी पचास से ज्यादा तो
उसके अम्मा के दवा में जाता था,
हाँ बिटिया भी तो
व्याह लायक हो रही थी
शायद सेल्समेन सा
दौड़ता दौड़ता थक गया था ,
नहीं! अभी कैसे थक
सकता था वो
अभी अभी हीं तो
उसके बच्चे का शहर
के स्कूल में
दाखिला हुआ था,
कल सुना था मैंने उसे
अगले साल का फसल
कर्जे के आधे दामो में
बिका था,
सरकार ने तो !
लगाई थी दुकान
फीर न जाने क्यों
वो नेताजी के
हाँ सवाल तो था
न जाने क्यों ?
(शंकर शाह)
चौराहे के नीम से
रस्सी उसे समेत ,
रही थी खुद में
जैसे कृष्ण सुदामा
का मिलन हो रहा था,
न जाने क्यों
कृष्ण इतना इतना
दीवाना हो रहा था
न जाने क्यों
सत: आंखे अश्रुविहीन थे
और कुछ आंखे
क्यों हुआ सोच रहा था
हाँ ! सवाल तो था
इस बार पानी अच्छी हुई थी
सुखा का मार न पड़ा था
कर्जे के बिज से, इस बार
फसल अच्छा हुआ था,
कोई बीमारी भी तो न थी उसे
और सरकार के आँकरो से
वो गरीब भी तो न था,
क्योंकी पचास से ज्यादा तो
उसके अम्मा के दवा में जाता था,
हाँ बिटिया भी तो
व्याह लायक हो रही थी
शायद सेल्समेन सा
दौड़ता दौड़ता थक गया था ,
नहीं! अभी कैसे थक
सकता था वो
अभी अभी हीं तो
उसके बच्चे का शहर
के स्कूल में
दाखिला हुआ था,
कल सुना था मैंने उसे
अगले साल का फसल
कर्जे के आधे दामो में
बिका था,
सरकार ने तो !
लगाई थी दुकान
फीर न जाने क्यों
वो नेताजी के
भतीजे को फसल बेचा !
हाँ सवाल तो था
न जाने क्यों ?
(शंकर शाह)
No comments:
Post a Comment
THANKS FOR YOUR VALUABLE COMENT !!