कई बार सवाल होता है ..जो जी रहे है क्या येही जिंदगी है ..सवाल खुद से बहुत सारे सवाल करता रहता है ..और जबाब छुपान छुपाई खेलता है भूलभुलैया रूपी जबाब मे..जो भी हो हम भी एक मोड़ पर फैसला कर लेते है ..जो पल है जिओ...आखिर खुद को धोखा देने का "ग़ालिब" ख्याल जो अच्छा है..
मैं आइने में जब भी अपना चेहरा देखता हूँ...मैं खुदमे दो चेहरे पाता हूँ..एक जो ज़माने की हिसाब से दिखना चाहता है और दूसरा खुद मैं खुद को तलाशता है..कभी कभी ऐसा लगता है जो हूँ दिख जाऊं पर आइना मेरा सृन्गारित चेहरा हिन् दिखाता है.. मतलब ये है 'धोखा देना चाहे तो आइने को तो दे सकते है पर दिल का क्या करे अपने विचारो का क्या करे...
Wednesday, February 23, 2011
Monday, February 14, 2011
Darpan Dikha Raha / दर्पण दिखा रहा
लम्हे यूँ भागते रहे जैसे उसके पर निकल आये हो...बचपन कब ढल के जवानी हुआ और जवानी धीरे धीरे बुढ़ापे की और...बंद दरवाजा करके बहुत बार सोचता हूँ बुढ़ापे की आहट मेरे दरवाजे पर न हो...अब तो घर के बुजुर्ग भी तो नहीं रहते मेरे साथ...फैसलों के फासले में जवानी बहुत बड़ा फासला बना चूका है...अब तरेरती आंखे बच्चो की दर्पण दिखा रहा है..और दीवाल में टंगे अपने ठहाके लगा रहे है..
(शंकर शाह)
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