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MERI KAHANI

Monday, November 18, 2013

मुझे किसी दायरे में ना बांध ये मेरे दोस्त। मै भी मिज़ाजे मौसम हूँ क्या पता कब बदल जाऊं।
 


शंकर शाह

Friday, November 8, 2013

कमाल कि आविष्कार हो कुदरत का ....मुस्कुराती तुम हो और दिन हमारा निखर जाता है !!!!↚
शंकर शाह

Monday, October 21, 2013

Chhodo Na Wo Kal Ki Batein / छोड़ो न वो तो कल की बातें थी

कभी पुराने खतों को खोल कर मुस्कुराई तो होगी ... शब्द नहीं मिले होंगे उन खतों में ....ना जाने क्या था, खुद उतर जाते थे पन्नो पर उछलते कूदते बुद्धे की तरह ... खोलके देखो पुराने खतों को जब रोने का दिल करे किसी कारन, सच मानो तुम्हारे आँशु मुस्कराहट बन थिरक जायेंगे तुम्हारे होंठो पर ...छोड़ो न वो तो कल की बातें थी !!!! पर सच है की हंसने का वजह भी वही कल है…

शंकर शाह

Wednesday, August 7, 2013

Harddisk / हार्डडिस्क

मै डरता हूँ, इंसान के खाल में, मेरा मौजूदगी क्या है, एक सवाल है .... मुझे सिकायत नहीं लोगो से या भीड़ से ..... मेले का क्या, चींटियो के भी तो मेले है लगते है .... पता नहीं लोगो की ऑंखें सावन भादो किसी के प्यार में हीं क्यों होती है ...  मेरे हिस्से में,  ज्वार-भाटा भावनाओ का सही नहीं ....कितना अच्छा होता न अगर मेरा दिमाग RAM होता जीवनचक्र का हार्डडिस्क नहीं ...   


#शंकर शाह

Tuesday, April 23, 2013

Na Jane Kab Tak / न जाने कब तक

तुम्हारे नजरो से चुराकर रंग, मैंने रंग लिए है मैंने चेहरे अपने ….देखो! ये धोखा नहीं है, ये तो रंग है बदलते दुनिया में, मैंने सिर्फ चेहरे हिन् रंगे है, तुम्हारे मनचाहे रंगों से… न जाने कब तक, ये समझौते की जिंदगी और मुखौटे की आड़ में एक तन्हाइ....न जाने कब तक!

शंकर शाह

Monday, April 15, 2013

Swaal / सवाल


मै सवालो के घेरे में कैद हो के रह गया हूँ ....जब तक वह एक सवाल का जबाब खोजता हूँ तब तक उस सवाल के मायने बदल गए होते है.."सवाल" सवाल अगर पथ है तो जबाब भूल भुलैया..जब सब बाधाओ को पार कर मै पहुँच जाता हूँ जवाब के करीब तो सवाल फीर से के सवाल कर बैठता है...जानता नहीं ये सिलसिला कबतक चलता रहेगा पर सवाल जबाब नामक बिल्लीओं के बिच में जिंदगी बन्दर बन के बैठा है…जरूरते लोगो की, मुझे उनके बिच, मेरे जिंदगी को कन्धा दे रखा है वरना बिल्लियाँ लडती नहीं और बन्दर महान नहीं होता ।

शंकर शाह    

Saturday, April 13, 2013

Rahashyamayi Dunia / रहश्यमयी दुनिया

एक रहश्यमयी दुनिया है, जहाँ कुछ दिनों से हर रोज़ पहुच जाता हूँ, कोई है जो मिलता है अब हररोज़ मुझे, वो मेरे खामोश कविता की कल्पना नहीं है, कुछ है तो है उसमे, जो मै सिर्फ सुनता हूँ उसे जब वो बोलती है, अच्छा लग रहा है अब मेरे शब्द कागज़ पे सिर्फ उतरते नहीं बतियाते भी है और बिखरते है रंग बनके, जैसे इन्द्रधनुषी सतरंग जो अब ओझल होते नहीं मेरे आँखों से,

शंकर शाह 


Saturday, March 2, 2013

Nashaa / नशा

रात भर सर्द हवाओं में तुम्हे ओढ़े रहा। आंख कैमरा बन कैद करता रहा तुम्हे, चाँद बनकर तुम भी तो इठला रही थी। अंगुलियों ने नजाने कितने गीत लिख डाले आसमान को लैटरपैड बना। सारी रात तुम गुनगुनाती रही और महकती रही सांसो में। एक नशा सा है तुम्हे देखना हथेलियों बिच और गले लगा लेना तुम्हारे ख्यालों को। सुबह पक्षिओ के गीत और पत्तियों पे चमकते ओश की बुँदे गवाह है मेरे हसीं रात का।  सुबह अभी भी नशे में है और में भी, फिर रात की इंतज़ार में।

शंकर शाह   

Thursday, February 21, 2013

तुमने जो देखा तो लगा जैसे दिल फिर से जीने लगा, धधकने भी जीती है जिंदगी होती है एहसास तेरे हर आहट पर, मुस्कुरा दो फिर से अब रातो मे करवटे बदलने का मजा हिन् कुछ और है!!!!!!

शंकर शाह

Monday, January 28, 2013

Jaroorate / जरूरते

मै एक थका हारा हुआ एक काया हूँ। सिपिओन की तरह दसको से अपने अन्दर  मोती खोज रहा हूँ। एक सफ़र है अंतहीन सफ़र, कभी लगता है मेरा मंजिल मिल गया और कभी सफ़र दिशाहीन। थका हुआ शरीर चल रहा है। पहियों के अविष्कार पे बस इतना ख्याल आता सायद इसे बर्तन बनाने के लिए बनाया गया होगा पर जरूरते गाड़ी बन गई।

शंकर शाह

Tuesday, January 1, 2013

Naya Panna / नया पन्ना

नया साल नया कैलेंडर और नयी तारीखें। प्रकिती और प्राकृतिक संरचना, बदलाव के पहिओं पे टहलता हुआ बहुत आगे निकल आया है एक बेहतर और बेहतर बदलाव के साथ। वहीँ हम चिपके हुए है एक झूठी बोझ के साथ संस्कारी बोड़े के साथ, ये प्रमाण है हमारे आदिम होने का। जहाँ बदलाव प्राकृतिक है वही हम बदलाव के बिच ग्लोबल वार्मिंग। एक उम्मीद कैलेंडर के बदलते पन्नो के साथ की हम संकीर्ण संस्कारी पन्नो को उलट के एक नया पन्ना जोड़े ताकि आने वाली सदियाँ गाली देने के बजाय वो पन्ने पलते और लिखदे नया कुछ।

शंकर शाह

Friday, December 14, 2012

Jindagi Aur Bhukh / जिंदगी और भूख

कुछ लोग जिन्दा है, दुसरो के हाथो से रोटीओं को छीन कर। कुछ लोग जिन्दा है अपनों के हिस्से को बेचकर और कुछ सच में जिन्दा है अपने हिस्से का बांटकर। जिन्दा रहने और जिंदगी के बिच झूलता इंसान कितना कुछ कर जाता है जो हमेशा जरूरत के इर्दगिर्द परिक्रमा करता या तो सूरज होता है या चाँद, पर जो भी हो जिंदगी और भूख के बिच जलता सिर्फ तो इंसानियत या उम्मीदे है।

शंकर शाह

Monday, November 12, 2012

Jindagi Jinda Rahe / जिंदगी जिन्दा रहे

कभी मिले हो एक ऐसे चेहरे से जो आइना हो खुद का। कभी मिलाये हो ऐसे नजर से जो देखता है तो तुम्हे पर कहीं उतर जाता है खुद में खूब गहराई तक। भगवान बस देना ताकत की अगर लैंपपोस्ट नहीं बन सका तो कोई बात नहीं पर जुगनू बन उम्मीद को जिन्दा रखु किसी झोपड़े का और जिन्दा मै भी रहूँ ताकि आत्मा और मेरे बिच, जिंदगी जिन्दा रहे।

(शंकर शाह) 

Thursday, November 8, 2012

Mere Hisse Ka / मेरे हिस्से का

याद है की तुम कभी थी सुबह के ओश बनके मेरे जिंदगी के पत्तियों पे। सूरज इन्द्रधनुष बन एहसास कराता था, की कुछ रंग है मेरे जीवन में भी। वक़्त है की करवटे बदलता रहा और रात है की निहारता है तुम्हे अब चाँद में। अब उतरो हकीकत बनके मेरे प्यार छत पे और मिलो तुम की मेरे हिस्से का करवाचौथ अभी बाकि है।

शंकर शाह

Friday, November 2, 2012

Khap / खाप

कोई उतरता है ख्वाब बनके रोज़ रात में...और कई कहते है, ख्वाब ख्वाब हिन् रहे तो अच्छा है...इच्छा है,कोई डाल दे जिन्दा इंसान मे जिंदगी और मेरे अधूरे बोल संगीत बन थिद्के किसी के होंठो पर...जिंदगी अब  मिल भी जाओ, वक़्त है की ठहरता हिन् नहीं है और "खाप" वाले है की प्रेम के चौपाल पे मंदिर बना रहे है.....

( शंकर शाह )