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MERI KAHANI

Monday, March 28, 2011

Sapno Ki Pari / सपनो की परी

चंदामामा के थपेड़ो के साथ हवाओ में घुलने लगता है एक खुसबू...घर की खिड़कीयां बताने लगाती है आहट किसी के होने का...किसी की खामोश हंसी दिल के धडकनों में लाल गुलाब बनने लगता है...और रात ओढा जाता है एक चादर खामोसी से मीठे स्वप्नों का..सपनो की परी हररोज चली आती है एक नए रूप में ...पर हकीकत का दिन हर बार मायुश कर देता है...सुना है परियां होती है...पर सायद कलियुग की वजह से आती नहीं जमीन पर ....


(शंकर शाह)

Wednesday, March 23, 2011

Sochta Hoon Wo Pal Kaisa Raha Hoga / सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा

सोचता हूँ वो पल भी कैसा रहा होगा
जब औरत बच्चे, बूढ़े, जवान
हर एक ने दिल का सुना होगा 

और जुल्म नहीं का विचार 
जब हतौड़ा बना होगा !!
 

सोचता हूँ वो पल भी कैसा होगा
जब मै, तुम, संप्रदाय विभिन्ताओ 

का आवाज होगा जब एक सुर 
सबका और एक तान रहा होगा !!
 

सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा 
जीने का चाहत रही होगी 
मर जाने का डर रहा होगा 
जब अपने से ऊपर देश रहा होगा !!

सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
भूख की कहा फिकर थी उनको  
न उनको किसी से बिछारने का डर रहा होगा 
मौत हीं नींद थी फिर कहा वो लड़ने डरा होगा !!

सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा
चिताओं के सेज पे जब अपनों का
आकार जला होगा, फिर भी न रोक सका
कदम वो अभिमान कैसा रहा होगा

सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा !!
सोचता हूँ मेरे लालसा भरी बहकते 
कदम देख, उन सब वीर वीरांगनाओं का 
कितना दिल जला होगा, जब मिलेंगे मुझसे 
मेरे पास उनको कहने को क्या होगा, 
सोचता हूँ वो पल कैसा रहा होगा  

शहीद दिवस पे भगत सिंह, राजगुरु और शहीद सुखदेव को कोटि कोटि नमन!!!!!

(शंकर शाह) 
 

Saturday, March 19, 2011

दुनियादारी के साथ भागते कदम और छुट रहे अपनों से हम...हम से मै हो रहा अपने आप के भीतर जरूरी हो जाता है एक और होलिका दहन की....और दहन के बाद जश्न...मै को जलाकर कोशिस करूँगा की बुत बन रहे "हम" को फिर से अपने अन्दर ला सकू....ताकि धरती सी हाथ मै चाँद का कटोरा इन्द्रधनुषी रंग मुझपे बिखेर सके.. ये बिना सोचे हुए की सामने वाले की रंग न बदल जाये....
"होली के शुभअवसर पर आप सभी को परिवार सहित ढेरो सुभकामनाये"....
 
 
 
(शंकर शाह)

Saturday, March 5, 2011

Mere Yaado Ko Kaise Mitaogi / मेरे यादो को कैसे मिटाओगी

चाहे जला दो तस्वीर मेरा, चाहे मेरा ख़त जला दो,
पर ये तो बताओ, मेरे यादो को कैसे मिटाओगी,
तुम्हारे दिल के किसी कोने में मेरा भी एक घर है 
अब बताओ मेरी जान उसे कैसे जलाओगी.....

(शंकर शाह) 

Wednesday, March 2, 2011

Mai Kahan Tak Jinda Hoon / मै कहा तक जिन्दा हूँ

कल से आज के बिच में बहुत कुछ बदलते देखा...ज़माने बदलने के साथ हम बदल रहे है या हमारे बदलने जमाना बदल रहा है? बदलाव है और क्यों मालूम है, पर सोच पर एक रंगीन पट्टी है बहाने का..कल जहाँ मंदिरों में भगवान बसते थे अब मंदिरों के खुले प्रांगन से निकल दिल के संकरा गलियो में बसने लगे है...और पूर्वजो का देवघर छोटे हो रहे कुतुम्बन सा, बक्से में बंद होने लगे है..मेरे लिए मायने यह है की ,मै कहा तक जिन्दा हूँ जिदगी के साथ बदलते समय और इंसान के बिच में ..महाशिवरात्रि के अवसर पर सभी दोस्तों को शुभकामनाये
(
शंकर शाह)

Wednesday, February 23, 2011

Galib Khyal Jo Achha hai / " ग़ालिब " ख्याल जो अच्छा है

कई बार सवाल होता है ..जो जी रहे है क्या येही जिंदगी है ..सवाल खुद से बहुत सारे सवाल करता रहता है ..और जबाब छुपान छुपाई खेलता है भूलभुलैया रूपी जबाब मे..जो भी हो हम भी एक मोड़ पर फैसला कर लेते है ..जो पल है जिओ...आखिर खुद को धोखा देने का "ग़ालिब"  ख्याल जो अच्छा है..

Monday, February 14, 2011

Darpan Dikha Raha / दर्पण दिखा रहा

लम्हे यूँ भागते रहे जैसे उसके पर निकल आये हो...बचपन कब ढल के जवानी हुआ और जवानी धीरे धीरे बुढ़ापे की और...बंद दरवाजा करके बहुत बार सोचता हूँ बुढ़ापे की आहट मेरे दरवाजे पर न हो...अब तो घर के बुजुर्ग भी तो नहीं रहते मेरे साथ...फैसलों के फासले में जवानी बहुत बड़ा फासला बना चूका है...अब तरेरती आंखे बच्चो की दर्पण दिखा रहा है..और दीवाल में टंगे अपने ठहाके लगा रहे है..

(शंकर शाह)

Saturday, January 29, 2011

Maa Bharti / माँ भारती

सपनो के रंगीनिओं में 
अब कोई अप्सरा नहीं आती...
रात अब बचैनिओं के
आंचल में सर रख कर,
करवटे बदलने लगा है...

दिन के भागम भाग से थक कर भी
अब नींद नहीं आती...
दिल के अब कई विभाग हो गए है...
एक कहता है वो कर डालो जो चाहते हो..
एक कहता है नहीं मत करो कुछ...
जिओ जैसे दुनिया चल रहा है...
वरना घर के लोग हीं 
तुम्हे राजनीती का हिस्सा बना देंगे...

एक हिस्सा अब भी कह रहा है
निकल घर से रोंप दे एक पौधा क्रांति का,
जुगनू किसी के घर को रौशन नहीं करते ,
बन जा विष्फोट वतन का,

पर एक हिस्सा कह रहा है
सो जा नींद आ जाएगी 
तुझे क्या , क्यों में झमेले में पड़ता है...
दोस्तों दुआ करो नींद आ 
जाये मुझे, आपकी तरह...
कहीं सुना न सोने वाला पागल हो जाता है!! 

(शंकर शाह)

Friday, January 28, 2011

Bhulti Yado ka Tara / भूलती यादो का तारा


चलते हुए सफ़र में देख रहा हूँ....बाप बेटे का दोस्त तो बन जा रहा है....पर वहीँ बेटा  बाप के वजूद के लिए तरस जा रहा है.... देखे तो बेटे के दोस्त तो बहुत है पर बेटे को कही खो न इस दर हम बाप बनने का फ़र्ज़ भूलते जा रहे है....बुद्धिजीवीता के शिखर पर पहुँच कर ऐसा नहीं लगता की दसको के फासले को हमने सदिओं के दुरिओं में ढाल दिया है जहा बाबूजी के सकल में अब परदादा नज़र आ रहे है या एक स्वप्न जो भूलती यादो का तारा बन गया है ...



(शंकर शाह)

Tuesday, January 25, 2011

कौन कहता है अल्गावपंथी, उग्रवादी कश्मीर को हिंदुस्तान से अलग नहीं कर सकते....अभी के हालात साफ जाहिर करते है वो कामयाब हुए...आंख बंद सबकुछ देखने का दावा करने वाले बुद्धिजीवी भारतीओं...इतना भी न उदार बन जाओ आपका अपना बेटा आपको बाप कहने पर सर्मिन्दिगी महसूस करे... 

Tuesday, January 11, 2011

Mere Hisse Ka / मेरे हिस्से का

सोचता हूँ क्या करूं ऐसा जो देश के नाम हो जाये..फिर सोचता हूँ धरना, प्रदर्शन, विरोध अब तो नेताओ और उनके चमचो काम रह गया...मै ऐसा क्या करू जो देश के काम आ जाये...विचार के ढृढ़ता से सोचा क्यों न उपवास हो जाये...सायद मेरे हिस्से का दो रोटी महंगाई कम कर जाये.....
(शंकर शाह)

Friday, December 24, 2010

Jaag Yuva / जाग युवा

युवा तेरे हाथो में भविष्य
पर तेरा क्या वर्तमान है
उठ जाग मत सो ज्यादा
देश का तुझपे अभिमान है

...देख चारोओर हर जगह
फैला भ्रष्टाचार है
तू क्या अब भी सोता रहेगा
जो तू कल का सहार है

क्या रक्खा है नशे में
क्यों "काम" के पीछे तू बेकार है
क्या जिंदगी इसी से है तेरा
इसी से तो तेरा स्वाहा संसार है

तेरी ख्वाहिशे हीं तो लुट रही है
कुछ खिले अनखिले संसार को
स्वर्ग सी धरती हो जाये
बस तू विचार ले अपने विस्तार को

जाग तेरे सोने से एक युग बंचित हो रहा है
जाग तेरे सोने कोटि मानुष रो रहा है
क्या तू अब भी सोता रहेगा
जो तेरे सोने से तेरा आत्मा भी जो सो रहा है

जाग दिखादे अपना हौसला
जहर तुझे, जग़ को पिलाने वालो को
तू बता दे तू गंगा है
अस्तित्व तेरा "है!" बतादे तुझसे नहाने वालो को

जाग "युवा" अब न जगा तो देर हो जायेगा
तेरे सोने के साथ साथ इंसानियत सो जायेगा
इतिहास के पन्ने फिर न दोहराएंगे वीरो की कहानी
हर इतिहास तब रावन लिखवाएगा
(शंकर शाह)

Monday, December 13, 2010

Muskan ke Sath / मुस्कान के साथ

हमारे चलने के साथ साथ एक भीड़ चलता...एक उम्मीद के साथ की मौका मिले की हमारा पैर खिंच सके..आस्तीन के सांपो से घिड़े हुए...कई सोच विचारो के मिलावट से मैंने बचाओ रूपी कई दवाईयों का आविष्कार किया...पर वो मुझ से बड़े अविष्कारकर्ता निकले...मेरे हर अविष्कार के साथ उनका एंटीबायोटिक तैयार होता है...जो भी हो हर हार के बाद मै भी जुट जाता एक नए अविष्कार में...इस सिलसिलो में एक चीज सिखने को मिला...हमारा सबसे बड़ा कमजोड़ी यह है हम आवेश में आ जाते है और हम अपना काबिलियत खोने लगते है...मैंने शुरुवात कर दिया है उनका स्वागत करना मुस्कान के साथ और आप....


(शंकर शाह)

Saturday, December 11, 2010

Jindagi Adhura Na Reh Jaye / जिंदगी अधुरा न रह जाये

दिनों के बाद आज सूरज के उतार चढाव को देखने मिला...जिंदगी भी हमारी ऐसी हीं है न...सुबह के लालिमा से चलते चलते एक मोड़ आता है...जहाँ  अँधेरे के सिवा कुछ नहीं...पर इस अँधेरे में चाँद मिल जाता है एक भरोसे के साथ फिर कल सुबह...चाहे सुबह हो या न हो....जहा जिम्मेदारी के बोझ में हम सूरज होते है...वही कुछ पल अपनों के.. हमारे अन्दर चाँद के लिए तरस जाता है...चलिए सूरज चाँद के फासलों के बिच एक ब्रिज बनाये एक नए सोच के साथ पता नहीं कल हो न हो और जिंदगी अधुरा न रह जाये...


(शंकर शाह)

Wednesday, December 8, 2010

हम गम हीं गम में खुद को जलाते रहे...उनका प्यार तो देखो हमारे गम से घर का बाती जलाते रहे...गम में हमारे आंखे नदी बन गई...और उन बेशर्मो को देखो कपडे खोल उसमे नहाते रहे...

(शंकर शाह)