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MERI KAHANI

Monday, December 13, 2010

Muskan ke Sath / मुस्कान के साथ

हमारे चलने के साथ साथ एक भीड़ चलता...एक उम्मीद के साथ की मौका मिले की हमारा पैर खिंच सके..आस्तीन के सांपो से घिड़े हुए...कई सोच विचारो के मिलावट से मैंने बचाओ रूपी कई दवाईयों का आविष्कार किया...पर वो मुझ से बड़े अविष्कारकर्ता निकले...मेरे हर अविष्कार के साथ उनका एंटीबायोटिक तैयार होता है...जो भी हो हर हार के बाद मै भी जुट जाता एक नए अविष्कार में...इस सिलसिलो में एक चीज सिखने को मिला...हमारा सबसे बड़ा कमजोड़ी यह है हम आवेश में आ जाते है और हम अपना काबिलियत खोने लगते है...मैंने शुरुवात कर दिया है उनका स्वागत करना मुस्कान के साथ और आप....


(शंकर शाह)

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