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MERI KAHANI

Saturday, August 7, 2010

Insaniyat Ke Khet / इंसानियत के खेत

जो है वो नहीं है...जो नहीं है वो है..कुछ चीजे भावनाओ के साथ ऐसी जुडी होती है..जिसे लाख गलत होने पर भी हम सही साबित करने में तुले होते है..गाँव के सुनसान रास्ते पर पड़े उस शिलालेख की तरह.. भले नाम बदल गया हो गाँव का पर अंकित मिल जायेगा पुराना पता..जाने कई सतको से सुनसान परे इंसानियत के खेत कुछ हरियाली उगना तो चाहती है...पर नजाने कब तक कथित धर्म के ठेकेदार रूपी घासें इंसानियत के फसल को उगने न देगी....
 


(शंकर शाह)

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