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MERI KAHANI

Friday, August 20, 2010

निशिचर रात की गहराइयाँ मुझसे पूछती रही...बता तू ताकता क्या है..मैंने कहा दोस्त कुछ पल और तो निहार लेने दे तेरे पीछे जो उजाला छुपा है..उसे भी हो जाये भरोसा कोई मेरा बाट तकता बैठा है........
 

(शंकर शाह)

2 comments:

  1. अच्छी लगी रचना आपकी मुवारक हो

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  2. क्षमा करेंगे। "निशिचर रात" का क्या तात्पर्य है। रात की गहराईयां या निशिचर गहराईयां उचित नहीं होता?

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